ध्वजारोहण और परेड की परंपरा

  • Save

ध्वजारोहण और परेड स्वतंत्रता दिवस के उत्सव का सबसे आकर्षक और औपचारिक हिस्सा होते हैं। यह परंपरा देश की आज़ादी के साथ ही शुरू हुई और हर वर्ष पूरे देश में जोश और सम्मान के साथ निभाई जाती है। 15 अगस्त की सुबह प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराते हैं। इसके बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है, जो राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। इस क्षण को देखने के लिए हज़ारों लोग लाल किले के प्रांगण में इकट्ठा होते हैं और करोड़ों लोग टीवी व रेडियो के माध्यम से इसे लाइव देखते हैं।

दिल्ली में आयोजित मुख्य परेड में सेना, नौसेना और वायुसेना की टुकड़ियाँ अनुशासन और पराक्रम का प्रदर्शन करती हैं। इनके साथ-साथ अर्धसैनिक बल, पुलिस और एनसीसी कैडेट्स भी शामिल होते हैं। परेड में विभिन्न राज्यों की झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं, जिनमें उनकी सांस्कृतिक विरासत, लोककला, और विकास कार्यों की झलक देखने को मिलती है। यह झाँकियाँ “विविधता में एकता” के संदेश को जीवंत करती हैं।

ध्वजारोहण केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। देश के हर राज्य, ज़िले, शहर और गाँव में सरकारी इमारतों, स्कूलों और संस्थानों में तिरंगा फहराया जाता है। बच्चों के लिए यह दिन विशेष होता है, जब वे स्कूल की परेड में हिस्सा लेते हैं और देशभक्ति गीत गाते हैं।

ध्वजारोहण और परेड का आयोजन केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय सम्मान, एकता और देशभक्ति का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि तिरंगे की शान और देश की अखंडता बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। स्वतंत्रता दिवस की यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों में गर्व, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की भावना को मज़बूत करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via
Copy link