खरीफ सीजन शुरू हो गया है। 1 जून से कपास के बीज उपलब्ध होते ही किसानों ने कपास की बुवाई भी शुरू कर दी। बीजों में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए कृषि विभाग का भरारी पथक बड़ी टीम लगातार ग्रामीण क्षेत्रों का निरीक्षण कर रही है। इसी जांच में पिछले कुछ दिनों पहले यशोदा सिडस प्रा. ली. कंपनी के गोदाम का निरीक्षण किया। इसमे कंपनी के पास अत्यावश्यक प्रमाणीकरण का अभाव दिख के आया है। स्टेटमेंन्ट वन और टु भी उपलब्ध नहीं थे।
इसलिए कृषि अधीक्षक अनिल इंगले की टीम ने कार्रवाई की। करोड़ों रुपये के बीज काहाँ से आए और कैसे बने? इसे साबित करने के लिए कंपनी के पास दस्तावेज नहीं थे। इसलिए, एक महीने की अवधि के लिए बिक्री बंद करने का आदेश जारी किया गया था। कंपनी को लघबघ एक महीने तक अपना माल नहीं बेच पाती। लेकिन अचानक दो दिनों में प्रतिबंध हटा लिया गया।
लेकीन बिज को कोनते किसान के प्लाॅट मे तैयार किया गया था। उसका नाम गांव और जिला कौनसा यह दर्शानेवाले स्टेटमेंट कंपनी ने कृषि विभाग को सुपुर्त करने कि जानकारी है। किसानों और उनके मोबाइल नंबरों को सत्यापन किया जा रहा है। कृषि विभाग स्थिति पर पैनी नजर रखे हुए है ताकि बीजो में कोई घोटाला न हो, किसानों को फर्जी बीज न मिले और पिछले दो साल से निर्मान हुइ नापिकी परीस्थिती दोबारा न हो. इसलिए अब कृषि विभाग कडी नजर है। इस लिए कृषि कंपनी में उत्पादित बीज उत्पादक को खोजने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसमे जिला बीज प्रमाणन प्रणाली और बीज गुणन प्रणाली की जिम्मेदारी भी बढ़ा दी है। मौजूदा समय में बाजार में मानक बीजों से ज्यादा टूथफुल बिजे सबसे ज्यादा हैं। हिंगणघाट के यशोदा सिड स्थित कंपनी के गोदाम में करोडो के स्टॉक का ब्रिकी बंद आदेश खारीज करने जारी किए गए हैं। लेकिन जब ये बीज किसानों तक पहुंच जाते हैं, अंकुरित नहीं होते हैं या कुछ समस्याएं होती हैं, तो सवाल उठता है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा।
काली मुच्छ ये प्रसिध्द किस्म के धान के बीज की वेरायटी के बिज इसी कंपनी में बनते है। इसके अलावा यहां कपास, तुवर और सोयाबीन जैसे बीजों का प्रसंस्करण किया जाता है। कंपनी ने बीज के स्टेटमेंट एक और दो प्रस्तुत किए। उसके बाद बिक्री बंद आदेश खारीज किया गया कृषि अधीक्षक अनिल इंगले ने जानकारी दी है स्टेटमेंन्ट एक और दो बीज की
उत्पत्ति को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
बीज को किस जिले के किस गांव के किसानों से प्रसंस्करण के लिए कंपनी में लाया गया था। बीज उत्पादकों को खेती के तहत क्षेत्र और उत्पादित उपज का विस्तृत विवरण देना अनिवार्य है। इससे साबित होता है कि ये बीज कितने सच्चे और कितने झूठे हैं।पिछले कुछ सालों में यह बात सामने आई है कि बीज का छल कपट शुरू हो गया है. वर्धा के माडगांव में एक किसान ने अपने 60 एकड़ खेत में सोयाबीन बिजी लगाई थी लेकीन नहीं उगाई थी, इसलिए किसान उपभोक्ता फोरम में गया था। इसलिए अब बीज लेते समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। किसानों से बिना पक्के बिल के बीज न खरीदने की अपील की गई है। इसके अलावा अन्य कंपनियों पर भी भरारी पथकी की नजर है। कृषि विभाग को भी उन कंपनियों में बीजोत्पादक किसानों को खोजने की चुनौती सामना कृषी विभाग पर है।
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