तिरंगा और उसका महत्व

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भारत का राष्ट्रीय ध्वज, जिसे हम प्रेम से “तिरंगा” कहते हैं, स्वतंत्रता और एकता का सबसे बड़ा प्रतीक है। 15 अगस्त 1947 को जब भारत ने अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ादी पाई, तब पहली बार तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में लहराया गया। इसके प्रत्येक रंग, आकृति और प्रतीक का अपना एक विशेष महत्व है, जो हमें देश की मूलभूत विचारधारा से जोड़ता है।

तिरंगे में सबसे ऊपर केसरिया रंग साहस, त्याग और बलिदान की भावना का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आज़ाद कराया। बीच का सफेद रंग सत्य, शांति और पवित्रता का प्रतीक है, जो हमें एक संतुलित और न्यायपूर्ण समाज बनाने का संदेश देता है। सबसे नीचे हरा रंग जीवन, समृद्धि और प्रगति का प्रतीक है, जो हमारे देश की कृषि प्रधान संस्कृति और प्राकृतिक संपदा को दर्शाता है।

तिरंगे के बीच में स्थित अशोक चक्र गहरे नीले रंग का होता है, जिसमें 24 तीलियाँ हैं। यह चक्र धर्म, नीति और समय के सतत प्रवाह का प्रतीक है। 24 तीलियाँ दिन के 24 घंटे का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो हमें निरंतर प्रगति और कार्यशीलता की प्रेरणा देती हैं।

स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा हर घर, हर संस्था, स्कूल, सरकारी भवन और सड़कों पर गर्व के साथ लहराया जाता है। आज़ादी का अमृत महोत्सव जैसे अभियानों ने इसे और भी व्यापक रूप से घर-घर तक पहुंचाया है।

तिरंगे का सम्मान करना हर नागरिक का कर्तव्य है। इसे जमीन पर नहीं रखना, गंदा या फटा हुआ नहीं फहराना, और निर्धारित नियमों के अनुसार उतारना हमारे लिए सम्मान और जिम्मेदारी दोनों है। तिरंगे को देखकर हर भारतीय के मन में गर्व, एकता और देशभक्ति की भावना जागृत होती है, जो हमें याद दिलाती है कि हम एक हैं और सदैव एक रहेंगे।

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