ईरान और इज़राइल के बीच नए हमले: तेहरान ने परमाणु वार्ता से किया इनकार

21 जून, 2025 को ईरान और इज़राइल के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया, जब दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ नए सैन्य हमले शुरू किए। यह घटनाक्रम तब सामने आया जब तेहरान ने स्पष्ट रूप से परमाणु कार्यक्रम को लेकर किसी भी तरह की वार्ता से इनकार कर दिया, जब तक कि इज़राइल की ओर से हमले बंद नहीं हो जाते। इस ब्लॉग में, हम इस ताजा संघर्ष के प्रमुख पहलुओं, इसके कारणों और संभावित परिणामों पर चर्चा करेंगे।

संघर्ष की शुरुआत और ताजा हमले

पिछले सप्ताह इज़राइल द्वारा शुरू किए गए “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के तहत, इज़राइल ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। इन हमलों में तेहरान, इस्फहान, और कोम जैसे शहरों में कई लक्ष्यों को निशाना बनाया गया, जिसमें ईरान की सबसे बड़ी परमाणु अनुसंधान सुविधा और मिसाइल उत्पादन स्थल शामिल थे। इज़राइल का दावा है कि इन हमलों ने ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को कम से कम दो से तीन साल पीछे धकेल दिया है।

जवाब में, ईरान ने इज़राइल के प्रमुख शहरों, जैसे तेल अवीव, हाइफा, और बीरशेबा, पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इन हमलों में इज़राइली अस्पतालों और रिहायशी इलाकों को नुकसान पहुंचा, जिसमें कम से कम 25 लोग मारे गए और कई घायल हुए। ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है और वह इज़राइल के हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानता है।

परमाणु वार्ता पर ईरान का रुख

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने जिनेवा में यूरोपीय विदेश मंत्रियों के साथ बैठक के बाद स्पष्ट किया कि जब तक इज़राइल के हमले जारी रहेंगे, तब तक तेहरान परमाणु कार्यक्रम को लेकर कोई बातचीत नहीं करेगा। अराघची ने इज़राइल के हमलों को “आक्रामकता” करार देते हुए कहा कि ईरान केवल तभी कूटनीति पर विचार करेगा, जब हमले पूरी तरह बंद हों और इज़राइल को उसके “जघन्य अपराधों” के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।

इसके बावजूद, यूरोपीय देशों ने कूटनीतिक प्रयासों को जारी रखने की कोशिश की। जर्मनी, फ्रांस, और यूनाइटेड किंगडम के विदेश मंत्रियों ने जिनेवा में ईरान के साथ चर्चा की, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं हुई। यूरोपीय नेताओं का कहना है कि सैन्य साधनों से ईरान के परमाणु मुद्दे का कोई स्थायी समाधान नहीं हो सकता।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस संघर्ष में अमेरिका की संभावित भागीदारी को लेकर मिश्रित संदेश दिए हैं। उन्होंने कहा कि वह दो सप्ताह के भीतर फैसला लेंगे कि क्या अमेरिका सैन्य रूप से इज़राइल का समर्थन करेगा। ट्रम्प ने अमेरिकी खुफिया समुदाय की उस आकलन को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ईरान वर्तमान में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र में इज़राइल के राजदूत डैनी डैनन ने कहा कि इज़राइल तब तक हमले जारी रखेगा, जब तक ईरान का परमाणु खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता। दूसरी ओर, ईरान के राजदूत अमीर सईद इरावानी ने सुरक्षा परिषद से कार्रवाई की मांग की और अमेरिका की संभावित भागीदारी पर चिंता जताई।

क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव

इस संघर्ष ने मध्य पूर्व में पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति को और जटिल कर दिया है। इज़राइल के हमलों में 600 से अधिक ईरानी नागरिकों की मौत हो चुकी है, जबकि ईरान के जवाबी हमलों में 24 से अधिक इज़राइली मारे गए हैं। तेहरान में इंटरनेट12ेट की कमी और नागरिकों तक सूचनाओं की पहुंच में कठिनाई ने स्थिति को और भी अनिश्चित कर दिया है।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमलों के बाद स्थिति की निगरानी शुरू कर दी है। IAEA के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने चेतावनी दी है कि ईरान के बुशहर परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमला क्षेत्रीय आपदा को जन्म दे सकता है।

निष्कर्ष

ईरान और इज़राइल के बीच यह ताजा संघर्ष न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। परमाणु वार्ता के रास्ते बंद होने और सैन्य हमलों की निरंतरता से स्थिति और भी विस्फोटक हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह जरूरी है कि कूटनीतिक समाधान खोजा जाए ताकि इस संघर्ष को और बढ़ने से रोका जा सके।

क्या यह संघर्ष एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध में बदल जाएगा, या कूटनीति के रास्ते शांति स्थापित होगी? यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन आने वाले दिन इस क्षेत्र के भविष्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होंगे।

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