मुंबई. राज्य के नांदेड़, छत्रपति संभाजी नगर और नागपुर के अस्पतालों में मौतों को लेकर राज्य सरकार विपक्ष के निशाने पर है। नांदेड़ और संभाजीनगर में मौतों पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुओ मोटो लिया है और राज्य सरकार ने इस स्वास्थ्य पर खर्च किए गए बजट को लेकर रिपोर्ट मांगी है।
एक रिपोर्ट में सामने आया है कि राज्य में नवजात शिशुओं की अच्छी नहीं है। नांदेड़ के शंकरराव चव्हाण अस्पताल में 24 घंटे की अवधि में 24 मौतें हुईं। इनमें से 12 एक से तीन दिन की उम्र के नवजात शिशु थे। राज्य में हर दिन करीब 1 साल के कम उम्र के 40 बच्चों की मौत हो जाती है। नांदेड़ में मौत का शिकार हुए छह बच्चों को सांस लेने की तकलीफ थी।
शंकरराव चव्हाण अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा कि इन मौतों के बीच देखा जाना चाहिए कि क्या अस्पताल में शिशुओं को सांस लेने में मदद करने वाली मशीनें ((मैनुअल रिससिटेटर) उपलब्ध थीं और अगर उपलब्ध थीं तो क्या इन्हें इस्तेमाल करने वाली प्रशिक्षित कर्मचारी मौजूद थे।
इसी प्रकार से छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) के घाटी रोड स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज में 24 घंटे की अवधि में कुल 18 मौतें सामने आईं। इनमें दो समय से पूर्व जन्में कुछ ही दिन शिशु थे। राज्य के एक स्वास्थ्य अधिकारी की मानें तो पिछले कुछ सालों में कुछ सुधार हुआ है लेकिन राज्य में समय से पूर्व शिशुओं का जन्म होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण है। ये बच्चे नवजात मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। समय से पूर्व जन्म, शिशुओं पर वजन कम होना और उन्हें सांस लेने की तकलीफ इसके मुख्य कारण हैं।
अब तक राज्य के सरकारी अस्पतालों में करीब 60 मौतें हुई हैं। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। नांदेड़ में पुलिस ने शंकरराव चव्हाण अस्पताल के डीन और डॉक्टरों के खिलाफ केस भी दर्ज किया है।
प्रसव से पूर्व जन्म बड़ी चुनौती
औरंगाबाद के पूर्वी हिस्से में कार्यरत डॉ. अमोल जोशी का आकलन है कि हाल ही में समय से पूर्व जन्म के मामलों में वृद्धि हुई है। समय से पहले प्रसव का मुख्य कारण है कि मां के पोषण में कमी है। जो कि जागरूकता की कमी के चलते होता है। गर्भवती महिला मैक्रो पोषण तत्वों जैसे आयरन, जिंक को नहीं लेती हैं। ये तत्व शिशु की ग्रोथ के बराबर महत्वपूर्ण होते हैं।