वाड़ी।
महाभारत के काल में पांडवों ने इस दिन सोने के पत्ते यानी अपत्य पत्ते से शस्त्रों की पूजा की थी। तभी से भारतीय संस्कृति में दशहरे के दिन शस्त्र पूजन का विशेष महत्व रहा है। वाडी के स्मृति लेआउट में दि रॉयल शिव सांस्कृतिक फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष ओमकार तलमले द्वारा शस्त्रों का एक ऐतिहासिक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था, जिसका उद्देश्य सभी पुराने इतिहास के शस्त्र आम जनता को दिखाने के लिए उपलब्ध कराना था। इस शस्त्र प्रदर्शनी में वाघनख, अफगान जाम्बिया, कट्टी, भाला, तलवार, दानपट्टा, खनजीर, बीचवा, टोप, सुधारी तलवार, समशीर, कटना, माचू, परशु, गुप्त खनजीर, हस्तिमुख खनजीर, कटियार सहित कई वर्ष पूर्व के कई पुराने ऐतिहासिक शस्त्र हैं। प्रदर्शनी में कोरा, माडी, ढाल भी लगाई गई थी၊ प्रदर्शनी देखने के लिए बड़ी संख्या में नागरिक जमा हुए थे। सभी ने मुखौटों पहनकर शस्त्रों की पूजा की और शस्त्रों का प्रदर्शन देखा। ओंकार तलामले ने दर्शकों को प्रत्येक शस्त्रो के महत्व और उसके सांस्कृतिक इतिहास के बारे में बताया। प्रदर्शनी के दौरान ओंकार तलामले, पलाश अवचट, बाबू लहबर, ऋतिक निंबालकर, रोहन येलुरे, प्रती