‘सिख्या क्रांति’ के बावजूद 600 से अधिक बच्चों तक नहीं पहुंची शिक्षा: पंजाब की स्थिति

पंजाब सरकार द्वारा हाल ही में शुरू की गई ‘सिख्या क्रांति’ शिक्षा सुधार योजना ने राज्यभर में उम्मीद की एक नई किरण जगाई थी। आधुनिक तकनीक, स्मार्ट क्लासरूम, शिक्षकों का प्रशिक्षण, और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार जैसे कई बड़े वादे किए गए। लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।

600+ बच्चे अब भी स्कूल से बाहर

ताजा आंकड़ों के अनुसार, पंजाब के विभिन्न जिलों में 600 से अधिक बच्चे आज भी औपचारिक शिक्षा से वंचित हैं। यह आंकड़ा तब सामने आया जब एक सामाजिक सर्वेक्षण टीम ने ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में घर-घर जाकर बच्चों की शैक्षिक स्थिति की जांच की।

🌍 प्रभावित इलाके:

  • फाजिल्का, अबोहर, मानसा और मुक्तसर जैसे सीमावर्ती जिले
  • मजदूरी और पलायन प्रभावित क्षेत्र
  • अनुसूचित जाति व जनजाति बहुल गांव

  1. पलायन और अस्थायी मजदूरी:
    माता-पिता के मजदूरी पर जाने के कारण बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाता।
  2. स्कूल की दूरी:
    कई गांवों में नजदीक कोई स्कूल नहीं है, या आने-जाने के लिए साधन नहीं।
  3. डिजिटल डिवाइड:
    ‘स्मार्ट शिक्षा’ की पहल उन बच्चों तक नहीं पहुंची जिनके पास मोबाइल, इंटरनेट या बिजली ही नहीं है।
  4. बुनियादी सुविधाओं की कमी:
    कई सरकारी स्कूलों में अब भी पर्याप्त शिक्षक, टॉयलेट, पीने का पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।

‘सिख्या क्रांति’ की चुनौतियाँ

पंजाब सरकार ने इस योजना के तहत करोड़ों रुपये की लागत से डिजिटल क्लासरूम और सिलेबस में सुधार की पहल की है। लेकिन शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि “सिर्फ तकनीक से नहीं, मानसिकता और पहुंच दोनों में सुधार लाना होगा।”


शिक्षाविदों की राय:

डॉ. रणदीप सिंह (शिक्षा समाजसेवी) कहते हैं:

“सरकार की मंशा अच्छी है, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में भारी खामियां हैं। जरूरत है हर गांव में एक शिक्षा प्रहरी की, जो बच्चों को स्कूल लाने के लिए माता-पिता से संवाद करे।”


समाधान की दिशा में सुझाव:

  • शिक्षा मित्रों की नियुक्ति: गांवों में स्थानीय युवाओं को स्कूलों से जोड़कर बच्चों को लाने की जिम्मेदारी दी जाए।
  • माइग्रेशन ट्रैकिंग: अस्थायी मजदूरों के बच्चों के लिए मोबाइल स्कूल या शिफ्टेड शिक्षा व्यवस्था।
  • मुफ्त ट्रांसपोर्ट: दूरस्थ गांवों के बच्चों के लिए मुफ्त बस सुविधा।
  • सामुदायिक भागीदारी: पंचायतों, गुरुद्वारों और NGOs की भूमिका को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

‘सिख्या क्रांति’ के वादे और आंकड़ों के बीच जब 600 से अधिक बच्चे स्कूल के दरवाजे से दूर हैं, तब यह समझना जरूरी है कि शिक्षा सिर्फ नीतियों से नहीं, जमीनी कार्रवाई से पहुंचेगी। एक सच्ची “क्रांति” तब होगी जब हर बच्चा – चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हो – ज्ञान की रोशनी से वंचित न रहे।

📢 क्या आप जानते हैं आपके इलाके में कितने बच्चे स्कूल से बाहर हैं? वक्त है आवाज़ उठाने का।

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