हाल ही में जी7 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने एक महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक बयान दिया: “आतंकवाद का खुलकर समर्थन करने वाले राष्ट्रों को पुरस्कृत किया जा रहा है।” यह बयान वैश्विक मंच पर आतंकवाद के प्रति बढ़ती चिंताओं और इसे संबोधित करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता को रेखांकित करता है। यह ब्लॉग इस बयान के निहितार्थों, इसके पीछे के संदर्भ और भारत के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करता है।
बयान का संदर्भ
प्रधानमंत्री का यह बयान उस समय आया है जब वैश्विक स्तर पर आतंकवाद एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। आतंकवादी संगठनों के पास न केवल उन्नत हथियार और तकनीक तक पहुंच है, बल्कि कुछ देशों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनका समर्थन भी किया जा रहा है। जी7 जैसे मंच, जो विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है, पर इस मुद्दे को उठाना भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति को दर्शाता है।
प्रधानमंत्री का यह कथन उन देशों की ओर इशारा करता है जो आतंकवादी संगठनों को वित्तीय, सैन्य या वैचारिक समर्थन प्रदान करते हैं। ऐसे देश न केवल आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, बल्कि वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बनते हैं। दुर्भाग्यवश, कुछ मामलों में इन देशों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर न केवल स्वीकार किया जाता है, बल्कि उन्हें आर्थिक और कूटनीतिक लाभ भी मिलते हैं।
भारत का दृष्टिकोण
भारत लंबे समय से आतंकवाद का शिकार रहा है और इस मुद्दे पर वैश्विक समुदाय से ठोस कार्रवाई की मांग करता रहा है। चाहे वह सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद हो या आतंकवादी संगठनों को मिलने वाली वैश्विक फंडिंग, भारत ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ एकजुट और कठोर रुख अपनाने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री के बयान में निहित है कि कुछ देशों को उनके दोहरे रवैये के लिए जवाबदेह ठहराने की जरूरत है। एक तरफ ये देश आतंकवाद के खिलाफ बयानबाजी करते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे आतंकवादी समूहों को पनाह या संसाधन प्रदान करते हैं। यह दोहरापन न केवल वैश्विक सुरक्षा के लिए हानिकारक है, बल्कि उन देशों के लिए भी अन्यायपूर्ण है जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
वैश्विक समुदाय की भूमिका
जी7 जैसे मंच पर इस मुद्दे को उठाना इस बात का संकेत है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग को मजबूत करना चाहता है। लेकिन यह तभी संभव है जब सभी देश खुले तौर पर आतंकवाद के समर्थन को अस्वीकार करें और इसके खिलाफ ठोस कदम उठाएं। कुछ सुझाव इस प्रकार हो सकते हैं:
- आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक: आतंकवादी संगठनों को मिलने वाली वित्तीय सहायता को ट्रैक करने और रोकने के लिए सख्त अंतरराष्ट्रीय नियम बनाए जाएं।
- दोहरे मापदंडों का अंत: उन देशों पर कूटनीतिक और आर्थिक दबाव डाला जाए जो आतंकवाद का समर्थन करते हैं।
- सूचना और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान: आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए देशों के बीच बेहतर समन्वय और सूचना साझा करने की व्यवस्था हो।
- संयुक्त राष्ट्र की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नीतियों को लागू करने में और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री का यह बयान एक चेतावनी है कि आतंकवाद के समर्थन को नजरअंदाज करना वैश्विक शांति के लिए खतरा है। यह समय है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय एकजुट होकर उन देशों के खिलाफ कार्रवाई करे जो आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। भारत का यह रुख न केवल उसके अपने हितों की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति और स्थिरता के लिए एक मजबूत संदेश देता है।
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की आवाज अब और मजबूत हो रही है, और जी7 जैसे मंचों पर इस तरह के बयान इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। अब यह वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे और ठोस कदम उठाए।