
एससीओ सम्मेलन के समापन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को एक ही कार में रवाना होते देखा गया। यह तस्वीर इस बात का संकेत मानी जा रही है कि भारत किसी भी बाहरी दबाव में आकर रूस के साथ अपने संबंधों को कमजोर करने वाला नहीं है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस आत्मविश्वास से भारत का दृष्टिकोण रखा, उसने आने वाली विदेश नीति को एक नई दिशा दी है। इस दौरान भारत ने अमेरिका को भी यह साफ कर दिया कि किसी तरह का दोहरा रवैया स्वीकार्य नहीं होगा। खासतौर पर ऐसे समय में जब ट्रंप प्रशासन की व्यापार नीतियां वैश्विक बाजार के लिए चुनौती बन रही हैं, मोदी और पुतिन की अलग बैठक बेहद अहम मानी जा रही है।
दोनों नेताओं का एक ही वाहन से निकलना प्रतीक है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है। अमेरिका पहले भी भारत के रूस से तेल आयात पर सवाल उठाता रहा है, लेकिन भारत का रुख स्पष्ट है—यदि सस्ता और भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत मिलता है तो वह देशवासियों के हित में है।
प्रधानमंत्री मोदी लगातार यह दोहराते रहे हैं कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। वे कई बार व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत कर शांति बहाल करने की कोशिश कर चुके हैं। भारत का यह संतुलित दृष्टिकोण रूस के लिए भी महत्व रखता है।
इसके उलट, डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप लगते हैं कि वे शांति की बात से ज़्यादा व्यक्तिगत फायदे और पुरस्कारों को प्राथमिकता देते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष विराम की दिशा में अब तक उनकी कोशिशें कोई ठोस परिणाम नहीं ला सकी हैं। ऐसे में अगर मोदी–पुतिन वार्ता से सकारात्मक संकेत मिलते हैं, तो यह ट्रंप के लिए एक नई कूटनीतिक चुनौती साबित हो सकती है।