परिचय
मणिपुर में मई 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा ने राज्य को दो समुदायों – मैतेई और कुकी – के बीच गहरे विभाजन में धकेल दिया है। इस हिंसा ने न केवल सैकड़ों लोगों की जान ली, बल्कि हजारों लोगों को विस्थापित भी किया। इस संकट को हल करने के लिए केंद्र सरकार और कुकी समुदाय के बीच वार्ता एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में उभर रही है, जिसका लक्ष्य राज्य में लोगों और सामानों की मुक्त आवाजाही (फ्री मूवमेंट) को बहाल करना है। हाल के घटनाक्रमों से संकेत मिलता है कि यह वार्ता एक सकारात्मक दिशा में बढ़ रही है, जिससे मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति की बहाली की उम्मीद जगी है।
पृष्ठभूमि
मणिपुर में मई 2023 में शुरू हुई हिंसा के बाद से मैतेई और कुकी समुदाय भौगोलिक रूप से अलग-थलग हो गए। मैतेई समुदाय मुख्य रूप से इम्फाल घाटी तक सीमित है, जबकि कुकी समुदाय पहाड़ी क्षेत्रों में रहता है। इस विभाजन ने दोनों समुदायों के बीच आवाजाही को लगभग असंभव बना दिया, जिससे सामानों की आपूर्ति और सामान्य जीवन प्रभावित हुआ।
फरवरी 2025 में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 8 मार्च तक फ्री मूवमेंट शुरू करने की समय सीमा घोषित की थी। हालांकि, कुकी समुदाय के विरोध और कांगपोकपी में एक बस पर गोलीबारी की घटना ने इस पहल को अस्थायी रूप से रोक दिया।
हाल की प्रगति
हाल के महीनों में, केंद्र सरकार और कुकी समुदाय के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) समझौते के तहत वार्ता तेज हुई है। सूत्रों के अनुसार, दोनों पक्ष फ्री मूवमेंट को लागू करने के लिए सहमत होने की दिशा में बढ़ रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह मणिपुर में सामान्य स्थिति बहाल करने और दोनों समुदायों के बीच विश्वास को पुनर्जनन करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- कुकी शिविरों का स्थानांतरण: वार्ता में कुकी समुदाय के सशस्त्र समूहों के शिविरों को इम्फाल घाटी के किनारों से हटाने पर सहमति बन रही है। मैतेई समुदाय ने लंबे समय से इन शिविरों को घाटी पर हमलों का कारण बताया है, जबकि कुकी समुदाय इन आरोपों से इनकार करता है। सूत्रों का कहना है कि छोटे शिविरों को एक बड़े शिविर में समेकित करने या उन्हें पहाड़ी क्षेत्रों के अंदरूनी हिस्सों में स्थानांतरित करने की चर्चा चल रही है।
- हिंसा में कमी: राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद से मणिपुर में हिंसा में उल्लेखनीय कमी आई है। यह वार्ता के लिए अनुकूल माहौल प्रदान कर रहा है। हाल के उदाहरणों में, कुकी समुदाय ने शिरुई लिली उत्सव के दौरान मैतेई नागरिकों की आवाजाही को बाधित नहीं किया, और मैतेई समूह ने अहमदाबाद में विमान दुर्घटना में मारी गई एक कुकी महिला के रिश्तेदारों के लिए सुरक्षित मार्ग की मांग की।
- केंद्र की रणनीति: केंद्र सरकार ने एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें न केवल फ्री मूवमेंट को बढ़ावा देना शामिल है, बल्कि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) जैसे अन्य उग्रवादी समूहों के साथ शांति समझौते को लागू करना भी शामिल है। सरकार यूएनएलएफ के लिए शिविर स्थापित कर रही है और उनके कैडरों के लिए पहचान पत्र तैयार कर रही है।
चुनौतियाँ
हालांकि वार्ता सकारात्मक दिशा में बढ़ रही है, लेकिन कई चुनौतियाँ अभी भी बाकी हैं। कुकी समुदाय अपनी मांगों, विशेष रूप से एक अलग प्रशासनिक ढांचे या केंद्र शासित प्रदेश की स्थापना, पर अड़ा हुआ है। दूसरी ओर, केंद्र सरकार इस मांग को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि यह मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को प्रभावित कर सकता है।
इसके अलावा, मार्च 2025 में फ्री मूवमेंट शुरू करने की पहल के दौरान हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने स्थिति को जटिल बना दिया। कांगपोकपी में एक प्रदर्शनकारी की मौत और कई लोगों के घायल होने के बाद कुकी-ज़ो परिषद ने अनिश्चितकालीन बंद का आह्वान किया था, हालांकि बाद में इसे वापस ले लिया गया।
आगे की राह
मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार को दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली पर ध्यान देना होगा। फ्री मूवमेंट एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति और सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। केंद्र सरकार की मध्यस्थता में हाल की बैठकें, जैसे कि 5 अप्रैल 2025 को दिल्ली में हुई बैठक, इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत हैं।
संभावित उपाय:
- आर्थिक पुनर्वास पैकेज: विस्थापित परिवारों के लिए आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजनाएँ शुरू की जा सकती हैं।
- सुरक्षा उपाय: हिंसा को रोकने के लिए और सख्त सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होगी।
- निरंतर संवाद: मैतेई और कुकी समुदायों के बीच विश्वास बहाली के लिए नियमित और पारदर्शी संवाद जरूरी है।
निष्कर्ष
मणिपुर में सरकार और कुकी समुदाय के बीच चल रही वार्ता एक आशाजनक शुरुआत है। फ्री मूवमेंट डील की दिशा में प्रगति न केवल लोगों की आवाजाही को आसान बनाएगी, बल्कि यह राज्य में शांति और सामान्य स्थिति की बहाली की ओर भी एक बड़ा कदम होगा। हालांकि, इस प्रक्रिया में दोनों समुदायों के बीच विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देना सबसे बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार की मध्यस्थता और दोनों समुदायों की सकारात्मक भागीदारी से मणिपुर में लंबे समय से चली आ रही हिंसा का अंत हो सकता है।