
महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें पूरी दुनिया महात्मा गांधी के नाम से जानती है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख और प्रेरणादायी नेता थे। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया, जो उस समय के राजनीतिक संघर्ष में अनोखा और प्रभावशाली था। गांधीजी ने यह सिद्ध कर दिया कि बिना हिंसा और रक्तपात के भी एक राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है।
1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1917 का चंपारण सत्याग्रह उनके नेतृत्व में किसानों के अधिकारों की जीत का प्रतीक बना। इसके बाद 1920 का असहयोग आंदोलन, 1930 का नमक सत्याग्रह (दांडी मार्च) और 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ उनकी नेतृत्व क्षमता और जन-जन से जुड़ाव का प्रमाण हैं। उन्होंने हर आंदोलन में जनसाधारण की भागीदारी सुनिश्चित की, जिससे स्वतंत्रता की लहर गाँव-गाँव तक पहुँची।
गांधीजी का मानना था कि स्वतंत्रता केवल अंग्रेज़ों से राजनीतिक आज़ादी पाना नहीं है, बल्कि सामाजिक बुराइयों, जातिगत भेदभाव और आर्थिक शोषण से मुक्ति पाना भी आवश्यक है। वे स्वदेशी वस्त्र और खादी के उपयोग को बढ़ावा देते थे ताकि भारतीय उद्योग और आत्मनिर्भरता को बल मिले।
दिलचस्प बात यह है कि 15 अगस्त 1947 को जब देश आज़ाद हुआ, तब गांधीजी राजधानी दिल्ली में न होकर बंगाल के नोआखली में थे। वहाँ वे हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा को शांत करने के लिए अनशन पर बैठे थे। उन्होंने आज़ादी का जश्न मनाने की बजाय शांति और एकता की अपील की।
आज भी गांधीजी की शिक्षाएँ—अहिंसा, सत्य और सामाजिक न्याय—भारत की आत्मा का हिस्सा हैं। स्वतंत्रता दिवस पर उनका स्मरण हमें यह याद दिलाता है कि सच्ची आज़ादी तभी सार्थक है जब वह सभी के लिए समान, सुरक्षित और न्यायपूर्ण हो।