श्रद्धालु खर्च कर सकते हैं 4 लाख करोड़ से ज्यादा
नई दिल्ली. महाकुंभ मेला, जिसे मानव जाति का सबसे बड़ा सांस्कृतिक समागम माना जाता है, न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका आर्थिक प्रभाव भी असाधारण होता है. 2024 के महाकुंभ से 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक के व्यापार का अनुमान है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देगा.
यह आयोजन न केवल जीडीपी में 1 फीसदी से अधिक की वृद्धि करेगा, बल्कि सरकारी राजस्व को भी नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा.उत्तर प्रदेश सरकार के अनुमान के अनुसार, इस आयोजन में 40 करोड़ से अधिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के भाग लेने की उम्मीद है. अगर प्रत्येक व्यक्ति औसतन 5,000-10,000 रुपये खर्च करता है.
तो कुल खर्च 4.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. इसमें आवास, परिवहन, खानपान, हस्तशिल्प, और पर्यटन जैसे विभिन्न क्षेत्रों को फायदा होगा. यह खर्च जनवरी और फरवरी के महीनों के दौरान अनियोजित अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है.
सरकार का कुल राजस्व, जिसमें जीएसटी, आयकर और अन्य अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं, 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. अकेले जीएसटी संग्रह 50,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा छू सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ के लिए 16,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाई है. यह निवेश उच्च रिटर्न देने वाला साबित हो रहा है, जिससे सांस्कृतिक और आर्थिक दोनों लाभ हो रहे हैं.
महाकुंभ जैसे आयोजन भारत की अर्थव्यवस्था के अद्वितीय ढांचे को उजागर करते हैं, जहां संस्कृति और वाणिज्य का मेल होता है. ऐतिहासिक रूप से, मेले और धार्मिक आयोजन व्यापार, पर्यटन और सामाजिक संबंधों को बढ़ाने में सहायक रहे हैं. महाकुंभ न केवल आर्थिक समृद्धि लाता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी माध्यम बनता है.
जीडीपी और टैक्स में होगा इजाफा
महाकुंभ से जीडीपी के आंकड़ों में 1 फीसदी से अधिक की वृद्धि होने का अनुमान है. 2023-24 में भारत की जीडीपी 295.36 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2024-25 में 324.11 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ने की उम्मीद है. इस वृद्धि में महाकुंभ का महत्वपूर्ण योगदान होगा.