जब सर्द रातों में अलाव जलता है, ढोल की थाप पर कदम थिरकने लगते हैं और चारों तरफ “सुंदर मुंदरिए हो!” की आवाज़ गूंजती है – तब समझिए लोहड़ी आ गई है।
यह केवल आग का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन, प्रेम, परंपरा और पंजाबी संस्कृति का उत्सव है।
लोहड़ी का अर्थ – फसल और आशा का पर्व
लोहड़ी मुख्यतः मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाई जाती है और इसे नई फसल की कटाई के उपलक्ष्य में धन्यवाद के रूप में मनाया जाता है।
यह किसानों के लिए एक खुशियों का मौसम लेकर आता है, जब खेतों में लहराती सरसों, गेहूं और गन्ना उनके परिश्रम का फल बनकर सामने आते हैं।
लोहड़ी का त्योहार हमें याद दिलाता है कि मेहनत से उपजे अन्न का सम्मान और आभार ज़रूरी है।
अलाव के चारों ओर – एकता और गर्माहट की परंपरा
लोहड़ी की रात लोग खुले आसमान के नीचे अलाव जलाते हैं।
सभी – बच्चे, युवा, बुज़ुर्ग – मिलकर फेरियाँ करते हैं, गाते हैं और आग में तिल, मूंगफली, रेवड़ी और गुड़ अर्पित करते हैं।
यह परंपरा पुराने को छोड़कर नए की ओर बढ़ने, और नकारात्मकता को जलाकर सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करने का प्रतीक है।
ढोल, भांगड़ा और गिद्दा – लोहड़ी की जान
पंजाबी संस्कृति में संगीत और नृत्य आत्मा की तरह हैं।
लोहड़ी पर जैसे ही ढोल बजता है, हर कोई भांगड़ा और गिद्दा में झूम उठता है।
रंग-बिरंगे कपड़े, मुस्कराते चेहरे और ताल पर थिरकते कदम – यह दृश्य उत्सव की असली परिभाषा बन जाता है।
यह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक गर्व की झलक है।
पहली लोहड़ी – नवविवाहितों और नवजातों के लिए विशेष
लोहड़ी का विशेष महत्व उन घरों के लिए होता है जहाँ शादी या बच्चे का जन्म हाल ही में हुआ हो।
उनके लिए यह “पहली लोहड़ी” होती है – जिसमें पूरा परिवार उत्सव को और भी धूमधाम से मनाता है।
यह परंपरा न केवल खुशियाँ बाँटने, बल्कि रिश्तों को और मजबूत करने का अवसर देती है।
परंपरा से प्रगति तक – आधुनिक लोहड़ी
आज के दौर में लोहड़ी केवल पंजाब तक सीमित नहीं रही – यह दिल्ली, मुंबई, बंगलौर से लेकर विदेशों तक फैली हुई है।
कॉर्पोरेट ऑफिस, स्कूल-कॉलेज, एनआरआई कम्युनिटीज़ – हर जगह लोग इस पर्व को अपनाकर अपनी जड़ों से जुड़ने की कोशिश करते हैं।
यह साबित करता है कि लोहड़ी सिर्फ त्योहार नहीं – संस्कृति की आवाज़ है।
निष्कर्ष: लोहड़ी – जहां आग है, वहाँ अपनापन है
लोहड़ी हमें सिखाती है कि चाहे मौसम कितना भी ठंडा हो, जब दिलों में गर्माहट, अपनापन और संगीत हो – तो हर रात रोशन हो जाती है।
इस लोहड़ी, आइए मिलकर कहें:
“लोहड़ी दी लख-लख वधाइयां!”
“सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन विचारा हो!”
और अलाव के चारों ओर बैठकर परंपरा, परिवार और प्रेम को फिर से महसूस करें।