
स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री का संबोधन भारत की लोकतांत्रिक परंपरा का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यह परंपरा 16 अगस्त 1947 से शुरू हुई, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित किया और तिरंगा फहराया। तब से लेकर आज तक हर साल 15 अगस्त की सुबह प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं, जिसमें वे बीते वर्ष की उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं का विस्तृत ब्यौरा देते हैं।
लाल किले का चयन महज़ एक ऐतिहासिक स्मारक के रूप में नहीं, बल्कि मुग़ल काल से लेकर आज़ादी के संघर्ष तक के प्रतीक के रूप में किया गया है। यहाँ से दिया गया भाषण केवल सरकारी घोषणाओं का मंच नहीं होता, बल्कि यह देश की भावनाओं, उम्मीदों और संकल्प का प्रतीक भी है।
स्वतंत्रता दिवस पर सुबह सबसे पहले प्रधानमंत्री राष्ट्रीय युद्ध स्मारक या शहीद स्मारक पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इसके बाद वे लाल किले पर पहुँचकर सेना की सलामी लेते हैं और तिरंगा फहराते हैं। तिरंगे के साथ 21 तोपों की सलामी दी जाती है, जो राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है।
भाषण में प्रधानमंत्री देश की आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा से जुड़ी उपलब्धियों के साथ-साथ नए विकास कार्यों और योजनाओं की घोषणा भी करते हैं। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महिला सशक्तिकरण और तकनीकी विकास जैसे मुद्दे शामिल रहते हैं।
यह अवसर देश के हर नागरिक के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। टीवी, रेडियो और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर लाखों लोग इसे लाइव देखते हैं। प्रधानमंत्री का यह संबोधन न केवल भारत की वर्तमान स्थिति का आईना होता है, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए एक रोडमैप भी प्रस्तुत करता है। इस तरह, लाल किले से प्रधानमंत्री का संबोधन स्वतंत्रता दिवस के उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक क्षण माना जाता है।