भारत ने 2020 में कोविड-19 महामारी के दौर में एक नया नारा दिया – “आत्मनिर्भर भारत”। यह केवल एक योजना या सरकारी अभियान नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है – ऐसा भारत जो अपने संसाधनों, ज्ञान, तकनीक और क्षमताओं के बल पर आगे बढ़े, दूसरों पर निर्भर न रहे, और वैश्विक स्तर पर एक मजबूत भूमिका निभाए।
लेकिन सवाल यह है कि क्या आत्मनिर्भर भारत एक सपना मात्र है, या फिर यह वास्तव में एक नई सच्चाई की शुरुआत बन चुका है?
आत्मनिर्भर भारत: विचार की नींव
“वोकल फॉर लोकल”, “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया”, और “डिजिटल इंडिया” जैसी पहलों ने आत्मनिर्भरता को एक ठोस आधार दिया है। इसका मकसद है – स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित करना, निर्माण क्षमता को बढ़ाना, और विदेशी निर्भरता को कम करना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ’20वीं सदी का भारत नहीं, 21वीं सदी का आत्मनिर्भर भारत’ कहकर परिभाषित किया, जो न केवल आर्थिक बदलाव है, बल्कि सोच और आत्मविश्वास का परिवर्तन भी है।
सपना क्यों लगता है?
1. अत्यधिक आयात पर निर्भरता
भारत आज भी तकनीक, रक्षा उपकरण, चिप्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और कच्चे तेल जैसे क्षेत्रों में विदेशी आयात पर निर्भर है। जब तक इन क्षेत्रों में स्वदेशी विकल्प विकसित नहीं होते, तब तक आत्मनिर्भरता अधूरी रहेगी।
2. MSME सेक्टर की चुनौतियाँ
छोटे और मध्यम उद्योग आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ हैं, लेकिन उन्हें अभी भी फाइनेंस, टेक्नोलॉजी और स्किल्ड वर्कफोर्स की कमी झेलनी पड़ती है। बिना मजबूत MSME के आत्मनिर्भरता केवल एक नारा बनकर रह जाएगी।
3. शिक्षा और नवाचार में गैप
देश में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता और रिसर्च एवं इनोवेशन की गति अभी भी सीमित है। जब तक हम अपने तकनीकी समाधान खुद नहीं बना पाते, आत्मनिर्भरता अधूरी है।
सच्चाई की शुरुआत कैसे बन रहा है?
1. स्टार्टअप बूम
भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है। हजारों युवा अब खुद के व्यवसाय शुरू कर रहे हैं, रोजगार दे रहे हैं और देश में नवाचार ला रहे हैं। यह आत्मनिर्भरता की असली मिसाल है।
2. डिजिटल क्रांति
UPI, आधार, और डिजिटल पेमेंट्स ने भारत को डिजिटल शक्ति बना दिया है। अब गांवों तक डिजिटल सेवाएं पहुंच रही हैं, जिससे सरकार और नागरिकों के बीच सीधा संपर्क बन रहा है – यह आत्मनिर्भर शासन का प्रतीक है।
3. मेक इन इंडिया की सफलता
भारत अब मोबाइल निर्माण, रक्षा उत्पादों और सोलर टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। कई वैश्विक कंपनियाँ अब भारत में निर्माण केंद्र स्थापित कर रही हैं।
4. स्थानीय से वैश्विक की ओर
भारतीय उत्पाद अब ग्लोबल मार्केट में अपनी जगह बना रहे हैं – चाहे वह खादी हो, योग हो, या भारतीय IT सेवाएं। यह दिखाता है कि “वोकल फॉर लोकल” अब सिर्फ भावना नहीं, वास्तविकता बन रही है।
निष्कर्ष: सपना या सच्चाई?
आत्मनिर्भर भारत कोई एक दिन में हासिल होने वाला लक्ष्य नहीं है। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें सरकार, उद्योग, युवा, किसान, वैज्ञानिक और आम नागरिक – सभी की भूमिका जरूरी है।
आज यह जरूर कह सकते हैं कि आत्मनिर्भर भारत अब सपने से निकलकर सच्चाई की दिशा में चल पड़ा है। चुनौतियाँ हैं, लेकिन उनमें छिपे हैं अवसर भी। यह सपना अब नींव बन चुका है, जिसे आने वाले वर्षों में इमारत का रूप देना हम सबकी जिम्मेदारी है।
तो, आत्मनिर्भर भारत कोरी कल्पना नहीं, बल्कि नई सोच, नई ऊर्जा और नए भारत का निर्माण है।