कर्नाटक का मैसूर दशहरा: शाही वैभव और सांस्कृतिक रथयात्रा

भारत त्योहारों का देश है, और हर राज्य की अपनी एक अनूठी परंपरा है। लेकिन अगर बात दशहरा उत्सव की हो और शाही अंदाज़ की, तो कर्नाटक का मैसूर दशहरा (मैसूरु दशरा) सबसे पहले याद आता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि राजसी विरासत, सांस्कृतिक रंगों और अद्वितीय रथयात्रा के लिए भी प्रसिद्ध है।


इतिहास और परंपरा

मैसूर दशहरे की शुरुआत मानी जाती है 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य से। लेकिन इसका सबसे भव्य रूप सामने आया वाडियार राजवंश के दौरान, जिन्होंने इसे राज्योत्सव का दर्जा दिया।

यह पर्व अश्विन मास की नवरात्रि के दौरान दस दिनों तक मनाया जाता है, और इसका समापन होता है विजयादशमी पर।


मैसूर पैलेस: सजावट और रोशनी का स्वर्ग

इस पर्व का केंद्र होता है मैसूर पैलेस, जो दशहरे के दौरान रोशनी से जगमगा उठता है।

  • हर रात लगभग 1 लाख बल्बों से सजाया जाता है यह भव्य महल।
  • लोग दूर-दूर से केवल इस अद्भुत नज़ारे को देखने आते हैं।

महल के अंदर होती हैं सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, संगीत कार्यक्रम, और शाही परंपरा के झरोखे


जयमार्तंड की रथयात्रा: दशहरे की जान

विजयादशमी के दिन मैसूर की सड़कों पर निकलती है ‘जम्बो सवारी’, यानी शाही जुलूस।

  • इस शोभायात्रा की शोभा बढ़ाते हैं सजे-धजे हाथी, जिनमें सबसे आगे होता है जयमार्तंड, जो देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति को लेकर चलता है।
  • उसके पीछे चलते हैं सजीले घोड़े, ऊँट, बैंड, और राजसी झांकियाँ

यह रथयात्रा न केवल धार्मिक प्रतीक है, बल्कि कर्नाटक की सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन भी है।


सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएँ

पूरा मैसूर शहर इस समय बन जाता है एक सांस्कृतिक उत्सव स्थल, जिसमें होता है:

  • भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी जैसे शास्त्रीय नृत्य
  • लोक नृत्य: यक्षगान, डोलु कुनिता, पुजारी कुनीता
  • कवि सम्मेलन, चित्रकला प्रतियोगिता और पारंपरिक वेशभूषा प्रतियोगिता
  • दशहरा प्रदर्शनी, जहाँ शिल्प, हस्तकला, और स्थानीय उत्पादों का मेला लगता है

शॉपिंग और व्यंजन

  • मैसूर दशहरे के दौरान आपको मिलेगा मैसूर सिल्क, चंदन उत्पाद, लकड़ी की मूर्तियाँ और अन्य हस्तशिल्प।
  • खाने के शौकीनों के लिए – मैसूर पाक, बिसिबेले भात, और मैसूर मसाला डोसा जैसे व्यंजन बेहद लोकप्रिय हैं।

कब और कहाँ?

  • स्थान: मैसूर (मैसूरु), कर्नाटक
  • समय: हर साल सितंबर-अक्टूबर, नवरात्रि से विजयादशमी तक
  • कैसे पहुँचें: बेंगलुरु से सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा सीधी पहुँच

निष्कर्ष

मैसूर दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह है भारत की भव्यता, समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रतीक
यह हमें सिखाता है कि कैसे आधुनिकीकरण के दौर में भी हम अपनी धरोहर और रिवाज़ों को गर्व से सहेज सकते हैं।


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