जब मुंबई की सड़कों पर ढोल-ताशों की गूंज और “गणपति बप्पा मोरया!” की जयकारें गूंजती हैं, तब समझ लीजिए कि गणेश उत्सव का आगमन हो चुका है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि लोक आस्था, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक उत्सव का अद्भुत संगम भी है।
गणेश उत्सव: इतिहास और महत्व
गणेश उत्सव की शुरुआत धार्मिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद महीने की चतुर्थी को होती है, जब भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
लेकिन इस उत्सव को सार्वजनिक रूप में लोकप्रिय बनाया बाल गंगाधर तिलक ने, ताकि देशभक्ति और सामाजिक एकता को मज़बूती मिल सके।
आज यह पर्व बन चुका है मुंबई की पहचान, जिसमें हर गली, हर मोहल्ला, और हर दिल भगवान गणेश से जुड़ जाता है।
मूर्तियों की भव्यता और पंडालों की रचना
मुंबई में गणपति बप्पा की मूर्तियाँ:
- कला का जीवंत उदाहरण होती हैं
- 2 फीट से लेकर 30 फीट तक की विशाल मूर्तियाँ बनाई जाती हैं
- हर मूर्ति के साथ जुड़ी होती है एक थीम, जैसे – पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण या समाजिक संदेश
लालबागचा राजा, सिद्धिविनायक गणपति, गिरगांव चौपाटी गणेश जैसे नाम, न केवल भक्तों के लिए पूजनीय हैं, बल्कि मुंबई दर्शन का भी हिस्सा बन चुके हैं।
ढोल-ताशे और भक्ति की गूंज
गणेश चतुर्थी के दिन से लेकर विसर्जन तक:
- मुंबई की गलियाँ ढोल-ताशों, लेज़ीम, और भजनों से गूंज उठती हैं
- लोग पारंपरिक परिधान में, हाथों में फूल और आरती की थाली लिए, गणपति बप्पा का स्वागत करते हैं
- हर शाम को होती है आरती, जिसमें पूरा मोहल्ला एक साथ गाता है – “सुखकर्ता दुःखहर्ता“
सामाजिक एकता और लोक भागीदारी
गणेश उत्सव केवल एक धर्म का नहीं, यह पूरे समाज का त्योहार है:
- हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग मिलकर गणेश मंडल सजाते हैं
- बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग — सभी मिलकर सफाई, सजावट और भंडारों में हिस्सा लेते हैं
- यह पर्व बनता है सामूहिक भागीदारी का प्रतीक, जहाँ हर कोई गणपति बप्पा का सेवक बन जाता है
प्रसाद और स्वाद
गणेश उत्सव का सबसे प्यारा हिस्सा है — मोदक, जो गणेश जी का प्रिय भोग है।
इसके अलावा:
- नारियल लड्डू
- पूरणपोली
- साबूदाना खिचड़ी और फलाहारी व्यंजन
हर घर और मंडप में भोग और प्रसाद बाँटा जाता है, जिससे प्रेम और भक्ति की मिठास फैलती है।
विसर्जन: विदाई के आँसू और आस्था का समर्पण
10वें दिन, यानी अनंत चतुर्दशी को होती है गणेश जी की विदाई:
- विशाल शोभायात्राएँ निकलती हैं
- “गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या!” के नारों के साथ मूर्ति का समुद्र में विसर्जन होता है
- यह पल भावुक भी होता है, और भक्ति से भरा वादा भी, कि अगले साल फिर मिलेंगे
कब और कहाँ?
- समय: अगस्त–सितंबर (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक)
- स्थान: पूरे मुंबई में, प्रमुख पंडालों में – लालबाग, सिद्धिविनायक, वडाला, चौपाटी
- कैसे पहुँचें: मुंबई एयरपोर्ट और रेलवे द्वारा देश के हर कोने से जुड़ा
निष्कर्ष
गणेश उत्सव, मुंबई का एक ऐसा पर्व है जो भक्ति, सौंदर्य, एकता और ऊर्जा को एक साथ बाँधता है।
यह केवल पूजा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है जो हर साल लोगों को करीब लाता है और समाज को एक नई चेतना देता है।