कोचिंग के कारण छात्रों की मानसिक सेहत पर प्रभाव

आज की प्रतिस्पर्धा-प्रधान शिक्षा व्यवस्था में कोचिंग संस्थानों का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेषकर भारत जैसे देश में, जहां हर छात्र से अपेक्षा की जाती है कि वह डॉक्टर, इंजीनियर या प्रशासनिक अधिकारी बने — वहां कोचिंग संस्थान एक “जरूरी कदम” बन चुके हैं। परंतु, क्या कभी हमने सोचा है कि इस कोचिंग संस्कृति का छात्रों की मानसिक सेहत पर क्या प्रभाव पड़ता है?

1. अत्यधिक दबाव और तनाव

कोचिंग सेंटरों में छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन करने का अत्यधिक दबाव होता है। सुबह स्कूल, फिर घंटों की कोचिंग क्लासेस और फिर देर रात तक पढ़ाई — यह दिनचर्या बच्चों को थका देती है। यह शारीरिक थकान के साथ-साथ मानसिक थकान भी लाती है।

2. अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा

कोचिंग संस्थानों में अक्सर तुलना की जाती है — “उसने 95% लाया, तुम क्यों नहीं ला पाए?” इस तरह की तुलना से छात्रों में हीन भावना पैदा होती है। कई बार यह आत्म-संदेह, आत्मग्लानि और अवसाद (depression) जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म देती है।

3. व्यक्तिगत जीवन का अभाव

छात्रों को अपनी हॉबीज़, खेलकूद, परिवार और दोस्तों से दूर कर दिया जाता है। कोचिंग के चलते उनका संपूर्ण जीवन एक “रूटीन मशीन” की तरह हो जाता है जिसमें भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं होता।

4. अनसुलझी उम्मीदें और आत्महत्या की प्रवृत्ति

जब छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे हर हाल में टॉप करें, तो वे खुद पर अनावश्यक दबाव डाल लेते हैं। जब वे असफल होते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे बेकार हैं। पिछले कुछ वर्षों में कोटा, हैदराबाद और अन्य कोचिंग हब्स में छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले बढ़े हैं — जो कि एक बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है।

5. मानसिक स्वास्थ्य के लिए समाधान क्या है?

  • खुलकर संवाद करें: माता-पिता, शिक्षक और छात्र — सभी को आपसी संवाद बनाए रखना चाहिए।
  • रोज़ाना का ब्रेक ज़रूरी है: पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को आराम और मनोरंजन का समय भी मिलना चाहिए।
  • मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मदद: स्कूल और कोचिंग संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ (काउंसलर) होने चाहिए।
  • हर बच्चे की क्षमता अलग होती है: सभी बच्चों से एक जैसी उम्मीदें रखना सही नहीं है। उनके रुझान और रुचियों का सम्मान होना चाहिए।

निष्कर्ष:
कोचिंग संस्थान सफलता की राह में मददगार तो हो सकते हैं, लेकिन अगर यह सफलता मानसिक स्वास्थ्य की कीमत पर आती है, तो यह सोचने की बात है। हर छात्र एक व्यक्ति है — मशीन नहीं। कोचिंग से पहले हमें यह समझना होगा कि उनका मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य भी उतना ही ज़रूरी है जितना उनका अकादमिक प्रदर्शन।

👉 अगर आप छात्र हैं, तो याद रखें — “आपका स्वास्थ्य आपकी सबसे बड़ी पूंजी है।”
👉 अगर आप अभिभावक हैं, तो अपने बच्चों के सपनों को समझें, थोपें नहीं।


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