जब गंगा और गंडक नदियों का संगम होता है, वहीं एक अद्भुत सांस्कृतिक और व्यापारिक आयोजन भी होता है — सोनपुर मेला, जिसे हरिहर क्षेत्र मेला भी कहा जाता है। यह मेला बिहार के सारण जिले में स्थित सोनपुर town में आयोजित होता है और इसे एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहा जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सोनपुर मेले का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु ने गज और ग्राह की युद्ध से गज को मुक्त किया था। इस धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण यह स्थान हरिहरनाथ मंदिर के रूप में विख्यात हुआ और उसी के आसपास इस मेले की परंपरा शुरू हुई।
मौर्य काल से लेकर मुग़ल और ब्रिटिश काल तक, यह मेला व्यापार, भक्ति और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बना रहा।
पशु व्यापार का महाकुंभ
सोनपुर मेला की सबसे खास बात है — पशु व्यापार।
यहाँ हर साल हजारों की संख्या में लाए जाते हैं:
- हाथी (अतीत में)
- घोड़े
- बैल
- गायें
- ऊँट
- कुत्ते और पक्षी
हालांकि अब वन्यजीव संरक्षण कानूनों के चलते हाथियों की खरीद-बिक्री पर रोक है, फिर भी यह मेला अब भी घोड़ों और बैलों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है।
सांस्कृतिक और मनोरंजन का संगम
सोनपुर मेला सिर्फ पशुओं तक सीमित नहीं है। यह एक पूर्ण ग्रामीण उत्सव बन चुका है जहां देखने को मिलता है:
- झूले और सर्कस
- लोक संगीत और नाटक
- जादू के शो, पपेट शो, और तमाशे
- घुड़दौड़ और खेल प्रतियोगिताएं
- बिहार की पारंपरिक कला जैसे मधुबनी पेंटिंग और लकड़ी का काम
यह मेला गांव और शहर के बीच की खाई को पाटता है, जहां देहात की सादगी और व्यापार की समझ मिलती है।
खरीदारी और लोक शिल्प
मेले में लगने वाले बाजार में आपको मिलेगा:
- हस्तशिल्प उत्पाद
- मिट्टी के बर्तन
- लकड़ी के खिलौने
- पारंपरिक वस्त्र और आभूषण
- आयुर्वेदिक औषधियाँ और जड़ी-बूटियाँ
सभी चीज़ें स्थानीय शिल्पकारों द्वारा बनाई गई होती हैं, जिससे उन्हें सीधा लाभ मिलता है।
धार्मिक महत्त्व
- हरिहरनाथ मंदिर में दर्शन करने हज़ारों श्रद्धालु आते हैं।
- कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा-स्नान और पुण्यदायिनी यात्रा के रूप में लोग इसे विशेष मानते हैं।
कब और कहाँ?
- स्थान: सोनपुर, सारण जिला, बिहार (हाजीपुर से पास)
- समय: हर साल कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवंबर) से शुरू होकर कई हफ्तों तक चलता है
- कैसे पहुँचें: पटना से हाजीपुर होकर सड़क व रेल मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है
निष्कर्ष
सोनपुर मेला सिर्फ एक पशु मेला नहीं, बल्कि यह भारत की ग्रामीण संस्कृति, परंपरा, और व्यापारिक समझ का जीवंत चित्र है।
यह मेला हमें हमारे अतीत से जोड़ता है, और यह दिखाता है कि कैसे लोक संस्कृति और बाजार एक साथ मिलकर समाज को समृद्ध बनाते हैं।