अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें चार साल के निचले स्तर पर – ब्रेंट क्रूड 65.41 डॉलर प्रति बैरल।


वैश्विक तेल बाजार में बड़ी गिरावट

अप्रैल 2025 में अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल बाजार में एक बड़ी हलचल देखने को मिली जब ब्रेंट क्रूड की कीमत $65.41 प्रति बैरल पर आ गई – जो कि पिछले चार वर्षों का सबसे निचला स्तर है। इस गिरावट ने वैश्विक वित्तीय बाजारों, उभरती अर्थव्यवस्थाओं और तेल-आधारित देशों की आर्थिक स्थिरता पर असर डालना शुरू कर दिया है।


गिरावट के पीछे मुख्य कारण

  1. वैश्विक मांग में गिरावट:
    धीमी होती वैश्विक आर्थिक वृद्धि के चलते औद्योगिक मांग में कमी आई है, जिससे तेल की खपत घट रही है।
  2. ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का बढ़ता उपयोग:
    सौर, पवन और हाइड्रोजन जैसे ग्रीन एनर्जी विकल्पों की ओर रुझान बढ़ने से कच्चे तेल की मांग में गिरावट आ रही है।
  3. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार असंतुलन:
    दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनावपूर्ण व्यापार नीतियों ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की चिंता बढ़ाई है।
  4. ओपेक प्लस देशों की उत्पादन नीति:
    ओपेक देशों द्वारा उत्पादन में कटौती को लेकर ठोस समझौता न होने से आपूर्ति बनी हुई है, जिससे कीमतें और नीचे गईं।

भारत पर इसका क्या असर?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भारत के लिए राहत का संकेत है:

  • ईंधन की खुदरा कीमतें घट सकती हैं
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण
  • राजकोषीय घाटा सीमित रह सकता है
  • रुपया मजबूत हो सकता है (यदि ट्रेड बैलेंस सुधरे)

हालांकि, इसका फायदा कितना और कब तक मिलेगा, यह तेल कंपनियों की मूल्य निर्धारण नीति और केंद्र सरकार के टैक्स स्ट्रक्चर पर निर्भर करता है।


बाजार की प्रतिक्रिया

शेयर बाजारों में तेल-आधारित कंपनियों के शेयरों में हल्की गिरावट दर्ज की गई, जबकि एविएशन और ऑटो सेक्टर के शेयरों में बढ़त देखी गई क्योंकि इन उद्योगों के लिए ईंधन की लागत मुख्य व्यय होती है।


आगे का अनुमान

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वैश्विक आर्थिक गतिविधियां नहीं सुधरीं और ओपेक देश उत्पादन पर सख्ती नहीं बरतते, तो कच्चे तेल की कीमतें और नीचे जा सकती हैं। कुछ विश्लेषकों ने तो $60 प्रति बैरल का स्तर भी संभव बताया है।


निष्कर्ष

ब्रेंट क्रूड की कीमतों में यह ऐतिहासिक गिरावट जहां कुछ देशों के लिए आर्थिक संकट का संकेत है, वहीं भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह एक मौका हो सकता है। सरकार यदि इस समय का उपयोग राजस्व प्रबंधन और सब्सिडी नियंत्रण में करे, तो यह देश की अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान कर सकता है।


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