अमेरिकी टैरिफ के बीच भारत का व्यापार समझौतों की ओर रुख

2025 की वैश्विक अर्थव्यवस्था तेज़ी से बदल रही है। अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक व्यापार में अब स्थिरता की जगह रणनीतिक और राजनीतिक फैसलों का बोलबाला है। ऐसे समय में भारत ने व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements – FTAs) की दिशा में निर्णायक कदम उठाते हुए यह संकेत दिया है कि वह न केवल इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है, बल्कि अवसरों को भी पहचान रहा है।


अमेरिका का टैरिफ झटका

हाल ही में अमेरिका ने भारत से आयातित कई वस्तुओं पर औसतन 26% टैरिफ लगाने की घोषणा की। इसका असर भारत के निर्यातकों पर स्पष्ट रूप से दिखा, खासकर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में। यह कदम वैश्विक व्यापार व्यवस्था में बढ़ते संरक्षणवाद का संकेत देता है, जिसमें देश अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए दूसरों पर बोझ डाल रहे हैं।


भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया

भारत ने इस झटके को अवसर में बदलने की रणनीति अपनाई है। देश ने द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाए हैं, जिससे वह अमेरिका जैसे बड़े बाजार पर अत्यधिक निर्भरता को कम कर सके।

प्रमुख व्यापार साझेदार:

  • 🇬🇧 ब्रिटेन: भारत और यूके के बीच Free Trade Agreement (FTA) लगभग अंतिम चरण में है।
  • 🇦🇺 ऑस्ट्रेलिया: ECTA (Economic Cooperation and Trade Agreement) पहले ही लागू हो चुका है।
  • 🇦🇪 संयुक्त अरब अमीरात और 🇴🇲 ओमान: ऊर्जा और सेवा क्षेत्रों पर आधारित समझौते।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा:
“हम वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद द्विपक्षीय समझौतों के ज़रिए अपने आर्थिक हितों को संरक्षित करेंगे।”


लाभ: क्या बदल रहा है?

  1. निर्यात को बढ़ावा: टैरिफ में राहत मिलने से भारतीय उत्पाद वैश्विक बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे।
  2. रोज़गार सृजन: निर्यात और विदेशी निवेश बढ़ने से नई नौकरियां पैदा होंगी।
  3. कूटनीतिक मजबूती: व्यापार के ज़रिए भारत अन्य देशों के साथ अपने राजनीतिक संबंधों को भी मजबूत कर रहा है।

सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • घरेलू उद्योगों की रक्षा: FTAs के चलते कुछ सेक्टर्स को सस्ते विदेशी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा मिलेगी।
  • नियामकीय तालमेल: विभिन्न देशों के कानून और नियमों से सामंजस्य बैठाना कठिन हो सकता है।
  • कृषि और MSME पर असर: छोटे किसान और छोटे उद्योग कभी-कभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर पाते।

निष्कर्ष

भारत का अमेरिका के टैरिफ के बाद व्यापार समझौतों की ओर रुख केवल एक तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टिकोण का हिस्सा है। यह बदलाव एक आत्मनिर्भर भारत की ओर संकेत करता है, जो विश्व से कटकर नहीं बल्कि जुड़कर आगे बढ़ना चाहता है – अपनी शर्तों पर।

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