अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अप्रैल 2025 में घोषित 27% ‘रिसिप्रोकल टैरिफ़’ ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। भारत, जो अमेरिका का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, इस निर्णय से विशेष रूप से प्रभावित हुआ है। इस ब्लॉग में हम ट्रंप की टैरिफ़ नीति के भारत पर प्रभाव, चुनौतियों और संभावित अवसरों का विश्लेषण करेंगे।
भारत पर टैरिफ़ का सीधा प्रभाव
- निर्यात पर असर: भारत के $66 बिलियन के अमेरिकी निर्यात में से 87% पर प्रतिकारी टैरिफ़ का प्रभाव पड़ा है, जिससे हीरा, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में कठिनाइयाँ उत्पन्न हुई हैं।
- झींगा उद्योग संकट में: अमेरिका द्वारा झींगा पर टैरिफ़ 10% से बढ़ाकर 26% करने के निर्णय से भारत के $7 बिलियन के समुद्री खाद्य निर्यात उद्योग को खतरा है, जिससे आंध्र प्रदेश के लगभग 3 लाख किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
- डेयरी उत्पादों पर प्रभाव: विशेष डेयरी उत्पादों पर टैरिफ़ बढ़ने से भारत के डेयरी निर्यात में बाधा आ रही है, जिससे नवाचार और तकनीकी निवेश में भी कमी आ सकती है।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
- कूटनीतिक वार्ता: भारत ने प्रतिकारी टैरिफ़ लगाने से परहेज़ करते हुए अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को प्राथमिकता दी है, जिससे अन्य देशों की तुलना में भारत को बेहतर स्थिति में रखा जा सके।
- टैरिफ़ में रियायतें: भारत ने अमेरिकी मोटरसाइकिल और व्हिस्की पर टैरिफ़ कम करने के साथ-साथ $23 बिलियन के अमेरिकी आयात पर टैरिफ़ घटाने की पेशकश की है, जो वर्तमान में 5% से 30% के बीच है।
- ऊर्जा और रक्षा आयात में वृद्धि: भारत ने अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा उपकरणों के आयात को बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार संतुलन में सुधार हो सके।
संभावित अवसर
- स्थानीय उत्पादन में वृद्धि: टैरिफ़ के प्रभाव को कम करने के लिए कंपनियाँ अमेरिका में स्थानीय उत्पादन बढ़ा रही हैं, जिससे भारत में भी स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
- वैकल्पिक बाजारों की खोज: अमेरिका में टैरिफ़ बढ़ने से भारत अन्य बाजारों जैसे चीन, यूरोप और मध्य पूर्व में अपने निर्यात को बढ़ाने के अवसर तलाश सकता है।
- नीति सुधार और प्रतिस्पर्धा: टैरिफ़ के दबाव में भारत अपने व्यापारिक नीतियों में सुधार कर सकता है, जिससे दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
निष्कर्ष
ट्रंप की टैरिफ़ नीति ने भारत के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं, लेकिन इसके साथ ही संभावनाओं के नए द्वार भी खोले हैं। कूटनीतिक संतुलन, नीति सुधार और वैकल्पिक बाजारों की खोज से भारत इस संकट को अवसर में बदल सकता है।