भारत, जो एक कृषि प्रधान देश है, की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है। देश के कुल कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा खेती से जुड़ा हुआ है, लेकिन किसानों की स्थिति अभी भी कई चुनौतियों से भरी हुई है। कृषि सुधार और किसानों की स्थिति में सुधार के लिए राज्य स्तर पर विभिन्न योजनाएँ और नीतियाँ लागू की जा रही हैं।
इस ब्लॉग में हम राज्य स्तर पर कृषि सुधारों, उनके प्रभाव, और किसानों की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करेंगे।
भारत में कृषि: एक महत्वपूर्ण परिदृश्य
- कृषि का योगदान: भारत की जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 17-18% है।
- कार्यबल: लगभग 50% से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं।
- मुख्य फसलें: चावल, गेहूं, गन्ना, कपास, और दालें।
- चुनौतियाँ: कम आय, बढ़ती लागत, जल संकट, और बाजार की अस्थिरता।
राज्य स्तर पर कृषि सुधार: प्रमुख पहल
1. पंजाब: फसल विविधीकरण योजना
- उद्देश्य: धान और गेहूं पर निर्भरता कम करके फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना।
- मुख्य सुधार:
- बागवानी और दलहन फसलों को प्रोत्साहित करना।
- किसानों को जैविक खेती और कृषि उत्पादों के निर्यात की दिशा में प्रशिक्षित करना।
2. महाराष्ट्र: ‘जलयुक्त शिवार अभियान’
- उद्देश्य: कृषि के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- मुख्य सुधार:
- जल संचयन और जल प्रबंधन।
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पानी की कमी को दूर करना।
3. उत्तर प्रदेश: किसान ऋण माफी योजना
- उद्देश्य: कर्ज में डूबे किसानों को राहत देना।
- मुख्य सुधार:
- छोटे और सीमांत किसानों का कर्ज माफ।
- कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सब्सिडी।
4. आंध्र प्रदेश: रायतु भरोसा योजना
- उद्देश्य: किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- मुख्य सुधार:
- वार्षिक वित्तीय सहायता।
- प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित किसानों को मुआवजा।
5. राजस्थान: मरुस्थलीकरण रोकने की पहल
- उद्देश्य: रेगिस्तानी इलाकों में कृषि को बढ़ावा देना।
- मुख्य सुधार:
- सूखा प्रतिरोधी फसलें।
- सिंचाई के लिए टैंकर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली का विस्तार।
कृषि सुधारों के सकारात्मक प्रभाव
- कृषि उत्पादकता में वृद्धि:
नई तकनीकों और योजनाओं ने फसलों की पैदावार बढ़ाने में मदद की है। - किसानों की आय में सुधार:
सब्सिडी, कर्ज माफी, और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ने किसानों की वित्तीय स्थिति को मजबूत किया है। - जल प्रबंधन में सुधार:
राज्य स्तर पर जल संचयन योजनाओं ने सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता में सुधार किया है। - फसल विविधीकरण:
धान और गेहूं पर निर्भरता कम करने के प्रयासों से कृषि अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिली है।
किसानों की वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
1. आय में असमानता
- छोटे और सीमांत किसान आज भी वित्तीय तंगी का सामना कर रहे हैं।
- फसल की बिक्री में बिचौलियों की भूमिका उनकी आय पर असर डालती है।
2. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- असामान्य वर्षा और सूखा जैसी समस्याएँ खेती को प्रभावित कर रही हैं।
3. कर्ज की समस्या
- बैंकिंग प्रणाली तक पहुंच की कमी के कारण किसान साहूकारों पर निर्भर रहते हैं।
4. बाजार की अस्थिरता
- फसलों के दाम में उतार-चढ़ाव किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है।
5. तकनीकी जागरूकता की कमी
- कई किसान आधुनिक कृषि तकनीकों से अनभिज्ञ हैं।
भविष्य के लिए उपाय और सिफारिशें
- तकनीकी सशक्तिकरण:
किसानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म और नई कृषि तकनीकों की जानकारी दी जाए। - प्रत्यक्ष विपणन:
किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सीधा संपर्क स्थापित किया जाए ताकि बिचौलियों की भूमिका खत्म हो सके। - सिंचाई और जल प्रबंधन:
सभी राज्यों में जल संचयन और ड्रिप सिंचाई जैसी प्रणालियाँ लागू की जाएं। - फसल बीमा योजना का विस्तार:
सभी किसानों को फसल बीमा योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। - कृषि शिक्षा:
किसानों को नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूक किया जाए। - स्थानीय बाजार का विकास:
राज्यों को अपने-अपने क्षेत्रों में स्थानीय बाजारों को विकसित करना चाहिए।
निष्कर्ष
राज्य स्तर पर कृषि सुधार और नीतियाँ भारतीय कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, सुधारों का असर तब अधिक दिखाई देगा जब वे सभी किसानों तक पहुँचें और उनकी वास्तविक समस्याओं का समाधान करें।
कृषि और किसानों का सशक्तिकरण केवल आर्थिक सुधारों से नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों और ठोस नीतियों से संभव है। भारत के विकास की नींव उसके किसान ही हैं, और उनकी समस्याओं का समाधान करना देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।