कामठी।
पिछले दशकों में महिलाओं का उत्पीड़न रोकने और उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित संबंधित प्रकरणों का जिक्र करते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सदस्य व पूर्व राज्यमंत्री एड. सुलेखा कुंभारे ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा संकट में लग रही है। अगर कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में महिलाओं के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो जाना था। आज हालात ये है कि सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं की प्रताड़ना होने लगी है। मुंबई के साकीनाका में महिला से दुष्कर्म व हत्या के मामले पर कहा कि ऐसे मामलों में सजा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। दोषियों को तत्काल कठोर सजा मिले, फांसी जैसी सजा के लिए विलंब न हो। एड. सुलेखा कुंभारे ने कहा है कि भारत में महिलाओं की रक्षा हेतु कानूनों की कमी नहीं है। फिर भी महिला अत्याचार के प्रकरणों में जांच व सुनवाई की लंबी प्रक्रिया चलती रहती है। पूछताछ व कानूनी प्रक्रिया का दौर ऐसे चलता है कि कई पीड़िताएं पुलिस थानों में शिकायत दर्ज कराने को भी नहीं पहुंचती हैं। साकीनाका की घटना के मामले में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फार्स्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की घोषणा की है। लेकिन यह घोषणा पर्याप्त नहीं है। देखा गया है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी कई वर्ष तक प्रकरण लंबित रह जाते हैं। इन न्यायालयों से समय पर न्याय नहीं मिल पाता है। साकीनाका जैसे मामलों में दोषियों को फांसी की सजा तत्काल मिलनी चाहिए।