कोंढाली।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या और शुक्ल पक्ष की एकम को महाराष्ट्र में पोला पर्व मनाया गया।इस वर्ष भी वैश्विक महामारी कोविड 19 के तिसरी लहर के संभावित संक्रमण के चलते इस वर्ष यह पर्व 6 सितम्बर को पोले के पर्व पर गांव गांव के सार्वजनिक स्थलों पर मनाये जाने वाले इस महत्वपूर्ण त्यौहार को (गुढी में) बैलों तथा किसानों को पोला पुजन पर प्रशासन द्वारा रोक लगाये जाने से किसानों ने अपने जीवन सखा बैलों को खेतों से सजा धजाकर समिपस्थ मंदिरों के दर्शन के बाद अपने अपने घरों पर ही पुजा की। इसी प्रकार बच्चों के तान्हा पोले के रूप में संयुक्तरूप मनायी जानी वाली खुशीयों पर भी कोरोना संकट ने पानी फेर दिया। और 07 सितम्बर को सार्वजनिक स्थलों पर मनाये जाने वाले तान्हा पोले पर रोक लगायी गयी है। किसानों द्वारा पोले के दिन इस बैलों की पूजा की जाती है। पोला का मतलब होता है, बैलो का पूजन, श्रृंगार, सेवा और उनके प्रति आदरभाव प्रदर्शन का दिन। इस दिन को महाराष्ट्र में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में पोला दो दिन तक मनाया जाता है। अमावस्या के दिन बड़ा पोला मनाया जाता है, इस दिन वास्तविक बैलों की पूजा करते हैं। अगले दिन तान्हा या छोटा पोला मनाया जाता है, जिसमें बच्चे लकड़ी का बैल लेकर घर घर जाते हैं और सभी लोग बच्चों को पुरस्कार ( दक्षिणा) भी देते हैं। महाराष्ट्र में खेती का बहुत महत्व है, और पोला त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। बैलों को नहला धुलाकर सजाया जाता है और उन्हें पूरा आराम दिया जाता है। बैलों को भगवान मानने वाले किसान बैलों की हल्दी और गरम पानी से सिकाई करते हैं और उनकी इस दिन पूजा की जाती है। संध्या के समय परिवार के मुखिया द्वार बैलों से अनुरोध किया जाता है, आज आवतन घ्या, उद्या जेवायला या (आज निमंत्रण लीजिये और कल भोजन के लिए आइये) बोल कर बैलों को भोजन का निमंत्रण दिया जाता है और भोजन में पूरन पोली, कढ़ी, मूंग दाल के बड़े, और चावल बनाया जाता है। पर 2021 वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते पोले के सार्वजनिक पुजन नही हो सका जिस पर अनेक किसानों ने नाराजी व्यक्त की तो कुछ किसानों ने प्रशासन के निर्माण का स्वागत भी किया।