नागपुर. केसर का उपयोग प्राचीन काल से ही खाद्य पदार्थों में रंग और स्वाद के लिए मसाले के रूप में किया जाता रहा है. भारत में केसर की खेती जम्मू और कश्मीर में की जाती है. लेकिन नागपुर के एक उच्च शिक्षित दम्पति दिव्या और अक्षय होले ने अपने घर के बंद कमरे में ‘एरोपोनिक्स’ तकनीक की मदद से केसर की खेती की है.
दिव्या और अक्षय ने महज 4 बाय 4 के बंद कमरे में केसर की खेती की है. केसर की इस खेती से महज 5 महीने में इस युवा दम्पति को करीब 8 लाख रुपये कीमत की 1.5 से 2 किलो केसर पैदा होने की उम्मीद है. लगभग 40 हजार फूलों से आधा किलो केसर प्राप्त होता है. इससे यह महंगा होता है.
केसर की गुणवत्ता निर्धारित करने के लिए इसे पानी में डाला जाता है. नीचे बैठा हुआ केसर उत्तम गुणवत्ता वाला माना जाता है, जबकि पानी पर तैरता हुआ केसर हल्का गुणवत्ता वाला होता है. फ्लोटर्स केसर को सुखाते हैं और उसकी गुणवत्ता निर्धारित करने के लिए उसे वापस पानी में डाल दिया जाता हैं.
दिव्या एक बैंक में अधिकारी हैं, जबकि अक्षय का अपना व्यवसाय है. उनके माता-पिता एक किसान परिवार से थे, इसलिए कृषि के क्षेत्र में कुछ नया प्रयोग करने के लिए इच्छुक थे. इस तरह उन्हें इंटरनेट पर केसर की खेती के इस प्रयोग के बारे में पता चला. इसके बाद उन्होंने केसर की खेती के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू कर दी. केसर की खेती घर पर भी की जा सकती है, इस अवधारणा को समझने के बाद दिव्या और अक्षय इसके बारे में जानकारी लेने के लिए सीधे कश्मीर के पंपोर गए.
केसर के लिए विदर्भ वातावरण अनुकूल
विदर्भ में खेती और किसान संकट में हैं. कभी बेमौसम बारिश और कभी तेज धूप की वजह से खेतों में फसलें प्रभावित होती हैं. खेती में होने वाले नुकसान से कई किसान आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. आज के युवा एवं महत्वाकांक्षी किसान कृषि के अतिरिक्त व्यवसाय के रूप में खेतों में नये-नये प्रयोग करते नजर आ रहे हैं. होले दंपत्ति ने भी डेढ़ से दो साल तक पढ़ाई की और केसर की खेती को समृद्ध किया. महत्वपूर्ण बात यह है कि विदर्भ का वातावरण भी इसके लिए अनुकूल पाया गया है.
भारत में विकसित हो रही है ‘एरोपोनिक्स’ तकनीक
‘एरोपोनिक्स’ तकनीक की मदद से इनडोर केसर की खेती का सफल प्रयोग किया गया है. कृषि के लिए एरोपोनिक्स तकनीक पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुई है. इसमें बंद कमरे में तापमान नियंत्रण के साथ खेती की जाती है. किसी भी मिट्टी या पानी का उपयोग नहीं किया जाता है.