नई दिल्ली. जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ रहा है। आधुनिक कृषि प्लास्टिक पर बहुत ज्यादा निर्भर है। फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए प्लास्टिक सामग्रियों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। हर साल करीब 1.25 करोड़ टन प्लास्टिक कृषि क्षेत्र में खप जाती है, लेकिन पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव भी पड़ रहे हैं।
वियना विश्वविद्यालय के शोधकर्ता थिलो हॉफमैन के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने एक नया अध्ययन किया है, जिसमें कृषि क्षेत्र में उपयोग हो रहे प्लास्टिक के फायदे और नुकसान पर प्रकाश डाला गया है।
इस अध्ययन में बताया गया है कि जहां इसके फायदे हैं, वहां नुकसान भी कम नहीं। शोध के अनुसार प्लास्टिक एक तरफ जहां मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा रही है, वहीं फसलों की पैदावार में गिरावट की वजह भी बन रही है। हमारी खाद्य शृंखला में मिलते इसके हानिकारक घटक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर रहे हैं।
देखा जाए तो पारंपरिक प्लास्टिक लम्बे समय तक पर्यावरण में बना रहता है और मिट्टी में अपने अंश छोड़ जाता है। इसके महीन कण, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक के नाम से जाना जाता है वह भी बड़ी तेजी से हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर रहे हैं।
कृषि रसायनों द्वारा संदूषण के कारण कृषि में उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक को पुनर्चक्रित करना कठिन है। इसके अलावा प्लास्टिक के माइक्रोप्लास्टिक्स में बदलने से मिट्टी के स्वास्थ्य, सूक्ष्मजीवों और केंचुओं जैसे लाभकारी जीवों को नुकसान होता है। अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशन अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।
कृषि में 50 फीसदी प्लास्टिक का उपयोग
शोधकर्ताओं के अनुसार यदि कृषि में प्लास्टिक उपयोग के फायदों की बात करें तो प्लास्टिक के बने औजार, उपकरण और सिंचाई के साधन कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। वहीं मौसम की मार, कीटों और खरपतवार से बचने के लिए किसान प्लास्टिक शीट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।