
नेपाल इस समय गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। देशभर में लगातार हो रहे हिंसक प्रदर्शनों और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस अस्थिर स्थिति के बीच नेपाल की सुरक्षा व्यवस्था अब सेना ने अपने हाथों में ले ली है।
हिंसक प्रदर्शन और अराजकता
पिछले कई हफ्तों से नेपाल के विभिन्न हिस्सों में लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। विरोध-प्रदर्शन कई जगहों पर हिंसक हो गए, जिसमें सरकारी भवनों को निशाना बनाया गया और पुलिस व प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। राजधानी काठमांडू समेत प्रमुख शहरों में आम जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का इस्तीफा
बढ़ते दबाव और लगातार बिगड़ते हालात के कारण प्रधानमंत्री ने शुक्रवार देर रात अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके कुछ ही घंटों बाद राष्ट्रपति ने भी पद छोड़ने का ऐलान कर दिया। दोनों नेताओं ने कहा कि वे “देश की शांति और लोकतांत्रिक व्यवस्था के हित” में यह कदम उठा रहे हैं।
सेना के हाथों में सुरक्षा
राजनीतिक नेतृत्व के अचानक खाली होने के बाद नेपाल में संवैधानिक संकट और गहराने की आशंका है। इसी बीच सेना ने सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली है। सेना प्रमुख ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए आश्वासन दिया कि कानून-व्यवस्था को बहाल करने और स्थिरता लाने के लिए सभी कदम उठाए जाएंगे।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की स्थिति पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि भारत नेपाल का करीबी पड़ोसी और मित्र है, और वहां की शांति और स्थिरता भारत के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी कर कहा है कि भारत नेपाल की जनता के साथ खड़ा है और हालात पर करीबी नज़र रख रहा है।
आगे की राह
नेपाल के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक शून्य को भरने और स्थिर सरकार बनाने की है। विशेषज्ञों का मानना है कि हालात को नियंत्रित करने के लिए जल्द चुनाव कराना या एक अंतरिम सरकार का गठन जरूरी हो सकता है। फिलहाल, सेना की मौजूदगी और नेतृत्व से यह देखना होगा कि देश में कितनी जल्दी सामान्य स्थिति बहाल हो पाती है।