लाखनी।
अश्विन (कोजागिरी) पूर्णिमा का बौद्ध धर्म में एक अनूठा सामान्य महत्व है। यह वर्षा ऋतु के अंत का अंतिम दिन है और उपासिका सुजाता ने तथागत गौतम बुद्ध को खिरदान दिया था। वर्तमान में बौद्ध होने का ढोंग करने वाले कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की कथनी और करनी में अंतर है। जिस तरह से बौद्ध धम्म का प्रचार और प्रसार बुद्ध की भूमि में होना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। यह 2011 की जनगणना के आंकड़ों से स्पष्ट होता है। अश्विन पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित सहविचार सभा में कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करते हुए डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर सामाजिक मंच महाराष्ट्र जिला शाखा भंडारा के महासचिव कैलाश गेदम ने अपने विचार व्यक्त किए। डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर सामाजिक मंच एक सामाजिक संगठन है। बाबासाहेब अंबेडकर की विचारधारा को अपनाते हैं। अश्विन पूर्णिमा के बारे में युवा पीढ़ी को पता होना चाहिए। इसके लिए डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर सोशल फोरम तालुका शाखा लखनी ने एक बैठक आयोजित की थी। अध्यक्ष, स्थानीय प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश भवसागर, मार्गदर्शक जिला महासचिव कैलास गेदम, मुख्य अतिथि प्रचार प्रमुख कालिदास खोबरागड़े, लोकशहर अंबाददास नागदेव, तालुका अध्यक्ष सेवानिवृत्त प्राचार्य अरविंद रामटेके उपस्थित थे। अश्विन पूर्णिमा पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने विस्तृत मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि कार्यकारी समिति के गठन के साथ जिले के सभी तालुकों में महिला मोर्चा, युवा मोर्चा और ओबीसी मोर्चा बनाना महत्वपूर्ण है। अरविंद रामटेके ने बैठक का परिचय और संचालन किया और भागवत मेश्राम ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। बैठक में छात्र मोर्चा के साहिल खोबरागड़े, सामाजिक कार्यकर्ता अनमोल लोनारे, सत्यवान मेश्राम, अजय रामटेके, सुधाकर मेश्राम, अर्जुन तिरपुड़े आदि मौजूद थे।