भारत की विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में हालिया गिरावट को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला है। राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि वे “नारे बनाने की कला में माहिर हैं, लेकिन समाधान देने में नहीं।” यह बयान भारत की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र के ‘ऐतिहासिक निचले स्तर’ पर पहुंचने के संदर्भ में आया है, जो देश के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इस ब्लॉग में हम राहुल गांधी के इस बयान, इसके निहितार्थों और भारत की आर्थिक स्थिति पर चर्चा करेंगे।
राहुल गांधी का बयान: नारे बनाम समाधान
राहुल गांधी ने अपने बयान में पीएम मोदी की नेतृत्व शैली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार आकर्षक नारों और प्रचार के जरिए जनता का ध्यान भटकाने में तो सफल रही है, लेकिन वास्तविक समस्याओं का समाधान करने में नाकाम रही है। “मेक इन इंडिया” जैसे बड़े-बड़े नारों के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी न केवल स्थिर रही, बल्कि हाल के आंकड़ों के अनुसार यह और भी कम हो गई है।
राहुल गांधी का यह तंज न केवल सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विपक्ष अब आर्थिक मुद्दों पर सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। विनिर्माण क्षेत्र की कमजोरी न केवल आर्थिक विकास को प्रभावित करती है, बल्कि यह बेरोजगारी और असमानता जैसे सामाजिक मुद्दों को भी बढ़ावा देती है।
भारत का विनिर्माण क्षेत्र: एक चिंताजनक स्थिति
भारत की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी कई वर्षों से चर्चा का विषय रही है। “मेक इन इंडिया” पहल, जिसे 2014 में लॉन्च किया गया था, का उद्देश्य भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाना और रोजगार के अवसर पैदा करना था। हालांकि, हाल के आंकड़े बताते हैं कि यह पहल अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रही है।
- आंकड़ों की हकीकत: भारत की जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 2024-25 में ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गई है। यह हिस्सेदारी 13% से भी कम हो गई है, जो पिछले दशकों की तुलना में काफी कम है।
- रोजगार पर प्रभाव: विनिर्माण क्षेत्र की कमजोरी का सबसे बड़ा प्रभाव युवाओं पर पड़ा है। लाखों युवा बेरोजगार हैं, और नए रोजगार सृजन की गति धीमी है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देश विनिर्माण में भारत से कहीं आगे निकल गए हैं। भारत को निवेश आकर्षित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि जटिल कर प्रणाली, भूमि अधिग्रहण की समस्याएं और अपर्याप्त बुनियादी ढांचा।
सरकार की नीतियां: कहां है कमी?
राहुल गांधी के बयान ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। “मेक इन इंडिया” जैसी योजनाओं के प्रचार पर भारी खर्च किया गया, लेकिन उनके कार्यान्वयन में कई कमियां देखी गईं। कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार हैं:
- नौकरशाही अड़चनें: भारत में व्यवसाय शुरू करने और चलाने में अभी भी कई नौकरशाही बाधाएं हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार के दावों के बावजूद, कई उद्यमियों को जटिल नियमों और लालफीताशाही का सामना करना पड़ता है।
- कौशल विकास की कमी: विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है। हालांकि, भारत में कौशल विकास कार्यक्रम अभी भी अपर्याप्त हैं।
- निवेश की कमी: विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित करने में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बुनियादी ढांचे की कमी और नीतिगत अनिश्चितता निवेशकों का भरोसा कम करती है।
- प्रचार पर अधिक जोर: सरकार ने नारों और प्रचार पर अधिक ध्यान दिया, जबकि जमीनी स्तर पर नीतियों को लागू करने में कमी रही।
राहुल गांधी का रुख: विपक्ष की रणनीति
राहुल गांधी का यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह विपक्ष की उस रणनीति का हिस्सा है, जो आर्थिक मुद्दों को केंद्र में लाकर सरकार को घेरना चाहती है। बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक मंदी जैसे मुद्दे आम जनता को सीधे प्रभावित करते हैं, और विपक्ष इन मुद्दों को उठाकर जनता के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
राहुल गांधी ने पहले भी कई मौकों पर सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की है। चाहे वह जीएसटी हो, नोटबंदी हो, या फिर कॉरपोरेट टैक्स में छूट का मुद्दा, कांग्रेस ने इन नीतियों को “गलत” और “जनविरोधी” करार दिया है। इस बार विनिर्माण क्षेत्र की गिरावट को उठाकर राहुल गांधी ने एक बार फिर सरकार को कठघरे में खड़ा किया है।
आगे की राह: समाधान क्या हैं?
विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति को सुधारने के लिए ठोस और दीर्घकालिक कदम उठाने की आवश्यकता है। कुछ संभावित समाधान इस प्रकार हो सकते हैं:
- नीतिगत सुधार: व्यवसाय शुरू करने और चलाने की प्रक्रिया को और सरल करना होगा। कर प्रणाली को और पारदर्शी और उद्यमी-अनुकूल बनाने की जरूरत है।
- बुनियादी ढांचे में निवेश: बेहतर सड़कें, बंदरगाह, और बिजली आपूर्ति विनिर्माण क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। सरकार को इस दिशा में निवेश बढ़ाना होगा।
- कौशल विकास: युवाओं को उद्योग की जरूरतों के अनुसार प्रशिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करने होंगे।
- निवेश को प्रोत्साहन: विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतिगत स्थिरता और प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है।
- छोटे और मध्यम उद्यमों को समर्थन: एमएसएमई (MSME) विनिर्माण क्षेत्र की रीढ़ हैं। इनके लिए आसान ऋण और तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
निष्कर्ष
राहुल गांधी का यह बयान कि पीएम मोदी “नारे बनाने की कला में माहिर हैं, लेकिन समाधान देने में नहीं,” भारत की आर्थिक स्थिति और सरकार की नीतियों पर एक गंभीर टिप्पणी है। विनिर्माण क्षेत्र की गिरावट न केवल आर्थिक विकास के लिए एक चुनौती है, बल्कि यह देश के युवाओं के भविष्य को भी प्रभावित करती है। सरकार को प्रचार से हटकर जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है, ताकि भारत को एक मजबूत विनिर्माण हब बनाया जा सके।
वहीं, विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। केवल आलोचना करने के बजाय, विपक्ष को वैकल्पिक नीतियां और समाधान प्रस्तुत करने होंगे। आखिरकार, भारत के आर्थिक विकास और समृद्धि के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा।