हाल ही में, जम्मू-कश्मीर के उन छात्रों को ईरान से सुरक्षित निकाला गया, जो वहां की अस्थिर स्थिति के कारण मुश्किल में थे। यह एक सराहनीय कदम था, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ कमियां सामने आईं, जिन्होंने लोगों का ध्यान खींचा। छात्रों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए जो बसें उपलब्ध कराई गईं, उनकी हालत कथित तौर पर खराब थी। इस मुद्दे ने न केवल छात्रों और उनके परिवारों को परेशान किया, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का भी ध्यान आकर्षित किया।
क्या है पूरा मामला?
ईरान में बढ़ते तनाव और असुरक्षा के माहौल के बीच, भारत सरकार ने वहां फंसे भारतीय नागरिकों, विशेष रूप से छात्रों, को निकालने का फैसला किया। जम्मू-कश्मीर के कई छात्र, जो वहां पढ़ाई के लिए गए थे, इस निकासी अभियान का हिस्सा बने। हालांकि, भारत लौटने के बाद इन छात्रों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए जो व्यवस्था की गई, वह अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी।
सूत्रों के अनुसार, छात्रों को ले जाने वाली बसें पुरानी और जर्जर थीं। इन बसों में न तो उचित सुविधाएं थीं और न ही सफर के दौरान आराम का ध्यान रखा गया। लंबी यात्रा के लिए ऐसी बसों का इस्तेमाल न केवल असुविधाजनक था, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी जोखिम भरा माना जा रहा है।
उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी नाराजगी जाहिर की और सरकार से इस लापरवाही के लिए जवाब मांगा। उमर ने कहा कि विदेश से मुश्किल हालात में लौटे छात्रों के साथ ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है। उन्होंने प्रशासन से तुरंत इस मामले की जांच करने और भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने की अपील की।
उमर अब्दुल्ला ने अपने बयान में यह भी जोड़ा कि छात्र देश का भविष्य हैं, और उनकी सुरक्षा और सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। उनकी इस टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा को जन्म दिया, जहां कई लोग उनके विचारों से सहमत दिखे।
छात्रों और परिवारों की शिकायतें
जिन छात्रों को इन बसों में यात्रा करनी पड़ी, उन्होंने और उनके परिवारों ने भी अपनी निराशा व्यक्त की। कई छात्रों ने बताया कि बसों में सीटें टूटी हुई थीं, एयर कंडीशनिंग काम नहीं कर रही थी, और सफर के दौरान कोई बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। कुछ अभिभावकों ने तो यह भी कहा कि ऐसी व्यवस्था से सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल उठते हैं।
सरकार का पक्ष
अभी तक सरकार की ओर से इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, यह उम्मीद की जा रही है कि उमर अब्दुल्ला और जनता के दबाव के बाद प्रशासन इस मुद्दे पर कार्रवाई करेगा। कुछ अधिकारियों ने अनौपचारिक रूप से कहा कि बसों की व्यवस्था में कमी के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जा रही है, और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर के छात्रों को ईरान से सुरक्षित निकालना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, लेकिन खराब बसों की व्यवस्था ने इस प्रयास पर सवालिया निशान लगा दिया। उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं की सक्रियता और जनता की आवाज से उम्मीद है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेगी। यह घटना एक सबक है कि आपातकालीन स्थितियों में भी सभी व्यवस्था