हमारे देश की सबसे मजबूत और अहम धुरी, जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं, वो है किसान।
हमारे लिए जो अनाज थाली में होता है, वही किसान की मेहनत का परिणाम है।
लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि क्या किसान की बात कोई सुनता है?
क्या हमारे देश के दिल में बसे उन लाखों किसानों की समस्याएं सिर्फ मीडिया के एक दिन के ट्रेंड तक सीमित रहती हैं, या उनका हल निकाला जाता है?
आज किसान सड़कों पर हैं, आंदोलन कर रहे हैं, और अपनी ज़िंदगी की गवाही दे रहे हैं, फिर भी उनकी आवाज़ को सिर्फ एक राजनैतिक बयानबाजी बनाकर छोड़ दिया जाता है।
किसान का संघर्ष: एक निरंतर प्रक्रिया
किसान हर दिन सूरज की किरण से पहले उठकर, खेतों में अपने परिवार की खुशहाली के लिए मेहनत करता है।
लेकिन क्या कभी उसकी मेहनत को उसकी असली कीमत मिली है?
- कर्ज़ का बोझ – कृषि में होने वाली घाटे के कारण, किसान अब तक कर्ज़ में डूबा हुआ है।
- सस्ते मूल्य पर उत्पाद बेचना – जब फसलें तैयार होती हैं, तो बाजार में मांग कम होती है, और किसान सस्ते में बेचने को मजबूर होता है।
- कृषि में तकनीकी बदलाव – नए उपकरण, नई विधियाँ और स्मार्ट एग्रीकल्चर की कमी, किसान को आधुनिक ज़माने से पीछे छोड़ देती है।
इन सभी मुद्दों पर सिर्फ वादा ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक समाधान चाहिए। किसानों के पास समय नहीं होता, वे लगातार दोहराए जाते इन मुद्दों से निराश हो चुके हैं।
आंदोलन का कारण: अनसुनी आवाज़
देश के लाखों किसान जब सड़कों पर उतरते हैं, तो उनका नारा एक ही होता है – “किसान की बात कोई क्यों नहीं सुनता?”
नए कृषि कानूनों के विरोध में लाखों किसानों ने साल 2020 में आंदोलन शुरू किया था।
कई महीनों तक उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर ठंड और गर्मी की तपिश में बैठकर अपनी आवाज़ उठाई।
लेकिन क्या किसी ने उनकी बात सुनी?
क्या उनके मुद्दों का हल निकला?
या फिर यह सिर्फ राजनीतिक खेल बनकर रह गया?
किसान सिर्फ कानूनी परिवर्तन की मांग नहीं कर रहे थे, वे चाहते थे कि उनकी जीविका, सम्मान और भविष्य की सुरक्षा हो।
लेकिन सरकार और अन्य नीति निर्माताओं ने उनकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ किया।
किसान निराश हैं, क्योंकि उनकी तकलीफें चुनावों के समय ही याद आती हैं और बाकी वक्त में वे सिर्फ आंकड़े बनकर रह जाते हैं।
किसान की आवाज़ को सुनने की ज़रूरत है
क्या हम सिर्फ जब आंदोलन हो, तब किसानों की समस्याओं को सुने?
क्या उनके संघर्षों को सिर्फ मीडिया ट्रेंड बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाए?
- कृषि नीति में सुधार – किसानों के लिए बेहतर नीति, मूल्य सुरक्षा, कृषि बीमा और सहकारी समितियाँ स्थापित करना जरूरी है।
- कृषि शिक्षा और तकनीकी विकास – किसानों को नई कृषि तकनीकों और स्मार्ट एग्रीकल्चर की जानकारी देना जरूरी है।
- कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ाना – उनके उत्पादों को सही मूल्य पर बेचना, ताकि किसान को उचित मुआवजा मिल सके।
- मूलभूत सुविधाएँ – किसानों के लिए सिंचाई, सड़क, और आधुनिक कृषि उपकरण उपलब्ध कराना जरूरी है।
किसान सिर्फ हक नहीं, सम्मान चाहता है। और इसका सबसे बड़ा तरीका है, उनकी आवाज़ को सुनना और उनका समर्थन करना।
निष्कर्ष: किसान की आवाज़ को सुनने का समय आ गया है
भारत का भविष्य किसान के हाथों में है।
अगर हम अपने देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें किसान को उसकी सही जगह देना होगा।
उनकी समस्याओं को सुनना और उनका समाधान निकालना हमारी जिम्मेदारी बनती है।
किसान की आवाज़ को सिर्फ आंदोलनों तक न छोड़ें, उसे संसद से लेकर सरकारी नीतियों तक पहुंचने दें।
तभी हम एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत बना सकते हैं, जहां किसान की बात ना केवल सुनी जाए, बल्कि उसका सम्मान भी किया जाए।
“किसान की आवाज़ नहीं सुननी, तो फिर कौन सुनें?”