भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, लेकिन क्या सबसे ज्यादा संभावनाओं वाला भी है? नहीं! क्योंकि एक सच्चाई जो हर युवा के चेहरे पर दिखती है वो है — बेरोज़गारी।
हर साल लाखों छात्र डिग्री लेकर निकलते हैं, लेकिन नौकरी की कतारें लंबी होती जाती हैं। ऐसे में सवाल उठता है — गलती किसकी है? सरकार की, शिक्षा की या हमारी मानसिकता की?
1. सरकार की नीतियाँ: अधूरी कोशिश या बस आंकड़ों का खेल?
सरकारें रोजगार सृजन के वादे तो करती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है।
- सरकारी नौकरियों की संख्या हर साल घटती जा रही है।
- प्राइवेट सेक्टर में भी स्थिरता नहीं है।
- छोटे उद्योगों को वो समर्थन नहीं मिलता जिससे वो लोगों को रोजगार दे सकें।
सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या केवल उसी पर दोष डाल देना ठीक है?
2. शिक्षा प्रणाली: डिग्री है, लेकिन योग्यता नहीं?
हमारी शिक्षा प्रणाली आज भी वही ‘पढ़ो-लिखो, नौकरी पाओ’ के पुराने फॉर्मूले पर चल रही है।
- विद्यार्थियों को सिर्फ थ्योरी सिखाई जाती है, व्यवहारिक ज्ञान नहीं।
- कॉलेज ग्रेजुएट होते ही कहते हैं – “अब क्या करें?”
- न स्किल्स हैं, न इंडस्ट्री की समझ।
शिक्षा का मकसद सिर्फ डिग्री नहीं, काबिलियत बनाना होना चाहिए।
3. हमारी मानसिकता: सरकारी नौकरी या कुछ नहीं?
हम में से अधिकतर लोगों की सोच आज भी कुछ ऐसी है:
- “सरकारी नौकरी मिले तो जिंदगी सेट है।”
- “बिज़नेस? नहीं भाई, रिस्क है।”
- “कम सैलरी वाली नौकरी से अच्छा है बेरोज़गार रहो।”
यही सोच हमें नया सीखने से रोकती है, कुछ अलग करने से डराती है, और अंत में बेरोज़गारी की दलदल में फंसा देती है।
4. समाधान क्या है?
समस्या | समाधान |
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सरकार की नीति | पारदर्शी और तेज़ भर्ती प्रक्रिया, MSME और स्टार्टअप को समर्थन |
शिक्षा प्रणाली | स्किल-बेस्ड, इंडस्ट्री-कनेक्टेड एजुकेशन |
मानसिकता | आत्मनिर्भर सोच, नया सीखने की इच्छा, जोखिम उठाने की हिम्मत |
निष्कर्ष
बेरोज़गारी एक पेड़ की तरह है, जिसकी जड़ें सरकारी नीति, शिक्षा प्रणाली और समाज की सोच में गहराई से फैली हुई हैं।
इसे खत्म करने के लिए सिर्फ एक जड़ काटना काफी नहीं — हमें हर स्तर पर बदलाव चाहिए।
अगर हम बदलाव को अपनाएं, तो एक ऐसा भारत बन सकता है जहां युवा केवल नौकरी खोजने वाले नहीं, रोजगार देने वाले भी होंगे।