शहरों में सड़क, पुल या मेट्रो निर्माण जैसी परियोजनाएं विकास की पहचान होती हैं। लेकिन जब इन कार्यों के दौरान ट्रैफिक डायवर्जन की योजनाएं ठीक से लागू नहीं होतीं, तो ये विकास जनता के लिए सिरदर्द बन जाता है।
हर बड़े शहर में हम देखते हैं —
🚦 जाम से भरी सड़कें
📢 हॉर्न की आवाज़ से परेशान लोग
⏳ दोगुना समय लगती यात्रा
🤯 ग़लत दिशा में फंसे वाहन
आख़िर क्यों ट्रैफिक डायवर्जन का सिस्टम इतनी बार फेल हो जाता है?
1. योजना में ही व्यावहारिकता की कमी
डायवर्जन की योजना काग़ज़ पर भले ही सही लगे, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और होती है।
- संकरे रास्तों पर डायवर्जन भेज दिया जाता है
- वैकल्पिक मार्गों पर ट्रैफिक लोड का अंदाज़ा नहीं लगाया जाता
- आसपास के स्कूल, अस्पताल, बाज़ार जैसे ज़रूरी स्थानों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है
👉 नतीजा: डायवर्ट किए गए रास्ते खुद जाम में बदल जाते हैं।
2. संकेतों और सूचना बोर्ड की कमी
ट्रैफिक डायवर्जन के दौरान अगर रास्ता बदलता है, तो उस दिशा में स्पष्ट और समय से पहले लगे संकेत बहुत ज़रूरी हैं।
- कई बार ड्राइवर को आख़िरी मोड़ पर पता चलता है कि रास्ता बंद है
- संकेत इतने छोटे या उलझे होते हैं कि दिखते ही नहीं
- रात में रिफ्लेक्टिव साइन या लाइटिंग की कमी रहती है
👉 नतीजा: वाहन चालक भ्रमित हो जाते हैं और ट्रैफिक अव्यवस्थित हो जाता है।
3. ट्रैफिक पुलिस की सीमित मौजूदगी
डायवर्जन के बाद नए रूट पर ट्रैफिक को नियंत्रित करना बेहद ज़रूरी होता है, लेकिन:
- पर्याप्त संख्या में ट्रैफिक पुलिस नहीं होती
- कई बार पुलिसकर्मी खुद डायवर्जन की जानकारी से अनभिज्ञ होते हैं
- पीक ऑवर में स्थिति और बिगड़ जाती है
👉 नतीजा: आम जनता खुद ही जद्दोजहद कर रास्ता निकालती है, जिससे अव्यवस्था बढ़ती है।
4. निर्माण कार्यों में अनावश्यक देरी
जब डायवर्जन महीनों तक चलता रहता है, और निर्माण कार्य लगातार देर होता है तो लोग झुंझलाहट में ट्रैफिक नियम तोड़ने लगते हैं।
- लोग अवैध यू-टर्न लेने लगते हैं
- टू-वीलर वाले फुटपाथ पर चलने लगते हैं
- सड़क पर हो जाती है अराजकता
👉 नतीजा: दुर्घटनाओं की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
5. पब्लिक को जानकारी नहीं देना
ट्रैफिक डायवर्जन के बारे में जनता को पहले से सूचित करना बेहद ज़रूरी है:
- शहर की वेबसाइट पर अपडेट नहीं होता
- सोशल मीडिया पर ट्रैफिक पुलिस की पोस्ट अधूरी होती है
- रेडियो और स्थानीय समाचारों में जानकारी देर से आती है
👉 नतीजा: लोग उसी पुराने रास्ते पर निकलते हैं और बीच रास्ते में फंस जाते हैं।
क्या किया जा सकता है?
- पूर्व नियोजन में स्थानीय विशेषज्ञों और नागरिकों की भागीदारी
- रियल-टाइम ट्रैफिक अपडेट के लिए मोबाइल ऐप या GPS सिस्टम से लिंकिंग
- रिफ्लेक्टिव संकेत, बड़े सूचना बोर्ड और रात में लाइटिंग का प्रबंध
- सड़क के आसपास के व्यवसायों और निवासियों को पहले से सूचना देना
- स्थायी समाधान के लिए निर्माण कार्य में सख़्त समयसीमा और मॉनिटरिंग
- अस्थायी फुटपाथ, क्रॉसिंग और साइकल पाथ की व्यवस्था
जनता की भूमिका
- अगर डायवर्जन ठीक नहीं है, तो स्थानीय प्रशासन या नगर निगम को ट्वीट/ईमेल करें
- सोशल मीडिया पर फोटो और लोकेशन के साथ पोस्ट करें
- ट्रैफिक से संबंधित हेल्पलाइन पर कॉल करें और रिकॉर्ड दर्ज कराएं
- स्थानीय मीडिया को सूचना देकर जन दबाव बनाएं
निष्कर्ष
निर्माण कार्य आवश्यक हैं, लेकिन योजनाओं की विफलता जनता की परेशानी नहीं बननी चाहिए।
जब ट्रैफिक डायवर्जन सही तरह से लागू नहीं होता, तो एक प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही शहर की रफ्तार जाम में बदल जाती है।
ज़रूरत है समझदारी, पारदर्शिता और नागरिकों की भागीदारी की, ताकि अगली बार कोई डायवर्जन “समस्या” नहीं, बल्कि सुलझा हुआ समाधान लगे।