समाज में पारिवारिक कलह की संख्या बढ़ती जा रही है. इस कलह और विवाद का असर छोटे बच्चों पर पड़ रहा है. ऐसा ही एक मामला मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के समक्ष आया. पारिवारिक कलह के कारण अलग होने वाले पिता से बच्चा मिलना चाहता था. वह स्कूल से सीधे पिता के पास चला गया. इसके बाद मां सीधे उच्च न्यायालय पहुंच गर्इं और बच्चे को वापस दिलाने की मांग की. इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्या. वृषाली जोशी के समक्ष हुई.
नागपुर के अजनी परिसर की एक़ महिला का दस-बारह साल पहले एक पुरुष से विवाह हुआ था. साल भर के भीतर ही दंपत्ति एक पुत्र के माता-पिता बन गए. बच्चा बड़ा होने लगा और इधर दंपत्ति के बीच विवाद की शुरुआत हो गई. इसका परिणाम बच्चे की मानसिकता पर पड़ता रहा .
लेकिन, माता-पिता ने इस पर कोई विचार नहीं किया. माता-पिता ने अलग रहने का निर्णय लिया और बच्चे को अपने जन्मदाता पिता से दूर रहना पड़ा. विवाद सीधे पारिवारिक न्यायालय में पहुंचा. दोनों के झगड़े में बच्चा पिस रहा था. देखते-देखते बच्चा 8 साल का हो गया. वह समझने लगा कि उसके माता-पिता अलग रहते हैं. उसने अपने पिता के संबंध में अपनी मां से सवाल भी पूछे.
बच्चे ने इच्छा व्यक्त की कि उसके जन्मदिन पर उसके पिता उपस्थित रहें. और पिता की मौजूदगी में बच्चे का आठवां जन्मदिन मनाया गया. दूसरे ही दिन 5 मार्च को लड़का सीधे स्कूल से अपने पिता के पास पहुंच गया. इससे विवाद में एक नया मोड़ आ गया.
चूंकि मामला पारिवारिक न्यायालय में प्रलंबित था. इसलिए इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ था कि बच्चे को किसके पास रहना होगा. इसके बाद इस मुद्दे को लेकर मां ने उच्च न्यायालय में दौड़ लगाई.
उच्च न्यायालय ने अजनी पुलिस को बच्चे के साथ पिता को हाजिर कराने का आदेश दिया.
पुलिस द्वारा बच्चे को उच्च न्यायालय में हाजिर करने के बाद अदालत ने बच्चे से उसकी इच्छा पूछी. बच्चे ने कहा, मां मेरी पिटाई करती है. इसलिए मुझे पिता के पास रहना है. प्राकृतिक रूप से जन्मदाता पिता का ही बच्चे पर अधिकार होता है. कानून में ऐसा प्रावधान भी है. इसलिए उच्च न्यायालय ने माता-पिता से कोई हल निकालने के लिए किसी मध्यस्थ की सलाह लेने के बारे में पूछताछ की. दोनों ने इस पर सहमति दिखाई.
न्यायालय ने दो हफ्तों में मध्यस्थ के समक्ष हाजिर रहने का आदेश दिया और मध्यस्थ से अपनी रिपोर्ट सौंपने का भी आदेश दिया. अगली सुनवाई 20 जून को होगी