नागपुर। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सुनील केदार एवं पांच अन्य को शुक्रवार को लगभग 150 करोड़ रुपए के नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (एनडीसीसीबी) घोटाले में दोषी पाया गया है। सुनील केदार नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के चेयरमैन रह चुके हैं। दोषी पाए गए अन्य लोग हैं केतन शेठ, नंदकिशोर त्रिवेदी, अशोक चौधरी, सुबोध भंडारी – सभी मुंबई से, और अहमदाबाद के अमित वर्मा।
महाराष्ट्र में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ज्योति पेखले-पुरकर ने 2002 से लगभग 21 वर्षों तक चले मुकदमे में अन्य तीन आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि कुछ अन्य संबंधित मामले अभी भी विभिन्न राज्यों में लंबित हैं। केदार और अन्य पर सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद के लिए सहकारी बैंक के धन को निजी संस्थाओं में स्थानांतरित कर मानदंडों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जिसके कारण एनडीसीसीबी को काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा और भी कई दूसरे आरोप हैं।
ये धाराएं लगीं
वहीं नागपुर जिला बैंक घोटाला सामने आने के बाद, 11 आरोपियों में से 9 पर धारा 406 (विश्वासघात), 409 (सरकारी कर्मचारियों द्वारा विश्वासघात आदि), 468 (जालसाजी), 471 (जालसाजी), 120-बी (साजिश) और धारा के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके साथ ही धारा 34 (समान प्रयोजन) आरोप तय किया गया।
क्या है घोटाले का मामला?
2002 में नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में 156 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का खुलासा हुआ था। उस समय वे बैंक के अध्यक्ष थे। वह मामले में मुख्य आरोपी हैं। 1999 में सुनील केदार नागपुर जिला बैंक के अध्यक्ष बने। होम ट्रेड लिमिटेड मुंबई, इंद्रमणि मर्चेंट्स लिमिटेड 2001-02 में सरकारी प्रतिभूतियां कुछ अन्य कंपनियों से खरीदी गईं। यह राशि सहकारी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए निवेश की गई थी। बाद में जब निजी कंपनी दिवालिया हो गई तो बैंक में किसानों का पैसा भी कम हो गया।
महाराष्ट्र में दर्ज हुए 19 मामले?
बाद में मामला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया। राज्य में कुल 19 मामले दर्ज किए गए हैं। प्रतिभूति दलाल के रूप में काम करने वाला केतन सेठ अभियुक्तों में से एक है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि इन सभी मामलों की सुनवाई एक ही स्थान पर की जाए। 5 अक्टूबर, 2021 को अदालत ने इन मामलों की सुनवाई रोकने का आदेश दिया था।
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मामले में शेष दलीलें पूरी की जानी चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना फैसला नहीं सुनाया जाना चाहिए। तदनुसार, सभी पक्षों ने अपनी दलीलें पूरी कीं। वरिष्ठ अधिवक्ता सुबोध धर्माधिकारी और वकील देवेन चौहान ने केदार की ओर से तर्क दिया। चौधरी का प्रतिनिधित्व उनके वकील अशोक भांगड़े ने किया। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया।
सुनील केदार पर निजी जीवन?
सुनील छत्रपाल केदार का जन्म 7 अप्रैल 1961 को हुआ था। वह महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। वह नागपुर के रहने वाले हैं। सुनील केदार महाराष्ट्र के दिवंगत पूर्व मंत्री और नागपुर जिले में सहकारी आंदोलन के अग्रणी छत्रपाल केदार के बेटे हैं। उन्होंने कृषि विज्ञान में स्नातक किया और मास्टर आॅफ बिजनेस एंड मैनेजमेंट से आगे की पढ़ाई की। उनकी पत्नी का नाम अनुजा विजयकर है। दंपति की दो बेटियां हैं जिनका नाम पूर्णिमा और पल्लवी है।
राजनीतिक करियर?
सुनील केदार ने 1992 में नागपुर जिला परिषद के सदस्य का चुनाव लड़ा। उनके राजनीतिक करियर की शुरूआत यहीं से हुई। 1995 में 9वीं महाराष्ट्र विधानसभा में वह सावनेर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बने। 1995 में केदार बिजली मंत्रालय और परिवहन मंत्रालय के राज्यमंत्री थे। 1996 में वह पत्तन मंत्रालय के राज्यमंत्री बने। एक बार फिर 2004 में 11वीं महाराष्ट्र विधानसभा में वह सावनेर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। 2009 में वह कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते। 2019 में भी वह कांग्रेस की टिकट पर जीते और उन्हें उद्धव ठाकरे सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल 2002 में सुनील केदार नागपुर डिस्ट्रिक्ट बैंक के चेयरमैन थे। उस समय बैंक का धन एक निजी कंपनी की मदद से कलकत्ता में कंपनी के शेयरों में निवेश किया गया था। लेकिन सहकारिता विभाग के एक्ट के मुताबिक बैंक से छूट लिए बिना बैंक का पैसा कहीं और बिल्कुल भी निवेश नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके बाद भी इस नियम का उल्लंघन कर राशि का निवेश किया गया। इसके बाद निजी कंपनी दिवालिया हो गई। इससे अनेक किसानों का बैंक में रखा पैसा भी डूब गया।