नई दिल्ली। सरकार ने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में बने कानून भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य कानून में बदलाव की पहल की है। इस महीने की शुरूआत में, संसदीय पैनल ने कई संशोधनों की पेशकश की थी, लेकिन कानूनों के हिंदी नामों पर कायम रहे। कानूनों के नाम हिंदी में होने के फैसले पर करीब 10 विपक्षी सदस्यों ने विरोध जताया। राजनीतिक दलों द्वारा लगातार इस कदम की आलोचना करने पर संसद की एक समिति ने मंगलवार को साफ कर दिया कि तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों का नाम हिंदी में होना असंवैधानिक नहीं हैं।अनुच्छेद 348 को लेकर छिड़ी बहस भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति ने संविधान के अनुच्छेद 348 को संज्ञान में लिया। दरअसल, अनुच्छेद 348 के अनुसार शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के साथ-साथ अधिनियमों, विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी भाषा होनी चाहिए।प्रस्तावित कानूनों को दिए गए नाम राज्यसभा में समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया, ‘समिति ने संहिता शब्द को अंग्रेजी में भी पाया, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है। समिति गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट है। साथ ही बात से सहमत है कि प्रस्तावित कानूनों को दिए गए नाम अनुच्छेद 348 का उल्लंघन नहीं हैं।’