उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल में 10 दिन से फंसे 41 मजदूरों का पहला फुटेज मंगलवार सुबह सामने आया। इस दौरान एक मजदूर ने अपनी मां को इमोशनल मैसेज भी दिया- मां, मैं ठीक हूं। आप समय पर खाना खा लेना।
सिलक्यारा और डंडालगांव में वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हो गई है। सिलक्यारा से आॅगर मशीन से 900 एमएम पाइप के अंदर अब एमएम का पाइप डाला जा रहा है, ताकि इसके सामने आई रुकावट हट सके। डंडालगांव से 6.5 मीटर टनल बना दी गई है। यहां 480 मीटर टनल बनाई जानी है।
इससे पहले अंदर फंसे मजदूरों को मंगलवार सुबह 24 बोतलों में गर्म खिचड़ी और दाल और दोपहर सेब और संतरे भेजे गए।
मंगलवार को कैमरे पर अंदर फंसे मजदूरों से बात हुई, उनकी गिनती की गई। सभी मजदूर सुरक्षित हैं। मजदूरों की हर एक्टिविटी का पता लगाने के लिए अब दिल्ली से हाईटेक सीसीटीवी मंगाए जा रहे हैं।
रोबोट ‘दक्ष’ और माइक्रो ड्रोन भी रास्ता ढूंढ़ रहे
9वें दिन पहाड़ में तीन जगह ड्रिलिंग की गई। टनल के दूसरे मुहाने पर टीएचडीसी ने हल्के ब्लास्ट के जरिए 880 मी. टनल बनानी शुरू की है। दूसरी ड्रिलिंग पुरानी जगह हुई। तीसरी टनल के साइड थे। 84 मी. वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी हो गई है। डीआरडीओ के माइक्रो ड्रोन और रोबोट दक्ष भी मलबे और टनल लाइनिंग के बीच के स्पेस से रास्ता ढूंढ रहे हैं। दो गर्डर गिरने से मलबा गिरा और मजदूर फंस गए
इंटरनेशनल एक्सपर्ट बोले- हम सबको बाहर निकाल लेंगे
आॅस्ट्रेलिया से आए इंटरनेशनल टनल एक्सपर्ट आॅर्नल्ड डिक्स ने मंगलवार सुबह रेस्क्यू आॅपेरशन की प्रोगेस पर संतोष जताया और कहा कि हम सभी लोगों को बाहर निकाला जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्टिकल ड्रिलिंग सटीक होनी काफी अहम है। वह आज वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग का भी जायजा लेंगे।
सोमवार को रेस्क्यू आॅपरेशन में दो अहम सफलता मिली। पहली, 6 इंच चौड़ी नई पाइपलाइन डाली गई। दूसरी, आॅगर मशीन के साथ काम कर रहे मजदूरों को किसी अनहोनी से बचाने के लिए रेस्क्यू टनल बनाई जा चुकी है।
मलबा गिरने की वजह प्राकृतिक नहीं, मानवीय
टनल के 60 मीटर हिस्से में मलबा गिरने की वजह प्राकृतिक नहीं, मानवीय है। 12 नवंबर की सुबह करीब साढ़े पांच बजे जब मलबा गिरना शुरू हुआ, तब मौके पर एक डंपर भी था। यह खुलासा हादसे के दौरान डंपर से कूदकर जान बचाने वाले एक मजदूर ने किया है।
उसने बताया, पिछले कुछ दिनों से सुरंग के मेन गेट से 200 से 270 मीटर अंदर मलबा गिर रहा था। इसे रोकने के लिए कंस्ट्रक्शन कंपनी के इंजीनियरों ने लोहे के गर्डर लगा दिए थे। दो गर्डर टनल की दीवार के सहारे और एक इनके ऊपर लगाया था। हादसे वाले दिन यानी 12 नवंबर को डंपर सुरंग से मलबा लेकर बाहर आ रहा था। इसी बीच, उसका पिछला हिस्सा गर्डर से टकरा गया।
मैं डंपर में खिड़की की तरफ था। टकराने की आवाज सुनते ही कूदकर भागा। फिर पीछे देखा तो सुरंग मलबे से भर गई थी और डंपर भी दबा था। ड्राइवर भागा या नहीं, मुझे नहीं पता। इस मजदूर की बात की पुष्टि बिहार, झारखंड और ओडिशा के उन मजदूरों ने भी की, जो हादसे से ठीक पहले बाहर निकले थे।