नई दिल्ली. दुनिया में जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह कहा जा रहा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी दशक में चरम पर होगा। इसके बाद इसमें ठहराव व कमी आएगी। लेकिन यह गिरावट 2019 के मुकाबले साल 2030 तक सिर्फ दो प्रतिशत होगी। यह खुलासे संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नई रिपोर्ट में किए गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे असर को रोकने के लिए उत्सर्जन में 43 प्रतिशत कमी जरूरी है। यह रिपोर्ट दुबई में होने जा रही जलवायु परिवर्तन पर पक्षकारों की 28वीं कॉन्फ्रेंस (कॉप28) से पहले जारी हुई है। कॉन्फ्रेंस में शामिल सभी देश पृथ्वी के औसत तापमान में सदी के अंत तक वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने के लिए सख्त कदम उठाने पर जोर देंगे।
कॉप28 के नामित अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर ने कहा कि यह रिपोर्ट तत्काल कदम उठाने की जरूरत साबित करती है ताकि हम पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल कर पाएं। इसके लिए कॉप28 अहम बिंदु साबित होगी। उल्लेखनीय है कि यह कॉन्फ्रेंस 30 नवंबर से शुरू होगी। यूएन (जलवायु परिवर्तन) कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा कि सरकारें मिलकर भी जलवायु संकट को टालने के लिए छोटे कदम ही उठा रहीं हैं, उन्हें बड़े कदम बढ़ाने होंगे।यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन के 195 पक्षकारों व देशों द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) का विश्लेषण कर यह रिपोर्ट बनाई गई है। खास बात सामने आई कि साल 2030 के बाद दुनिया में उत्सर्जन का चरम नहीं आएगा, बल्कि इसी दशक में चरम आ जाएगा। हालांकि उत्सर्जन में तेज गिरावट भी इस अवधि में नहीं होगी। यही 195 देश व पक्षकार 2019 में दुनिया के 94.9% उत्सर्जन के जिम्मेदार थे।
यह भी बताया रिपोर्ट ने
2025 में अनुमानित उत्सर्जन साल 1990 के मुकाबले 55.2 प्रतिशत और 2010 के मुकाबले 12.2 प्रतिशत अधिक होगा। 2030 में अनुमानित उत्सर्जन 1990 के मुकाबले 50.5 और 2010 के मुकाबले 8.8% अधिक हो सकता है।