नई दिल्ली। गृह मामलों की संसदीय स्थाई समिति ने प्रस्ताव रखा है कि आर्थिक अपराध के आरोपियों को हथकड़ी ना लगाई जाए। साथ ही इन आरोपियों को जेल में जघन्य अपराधियों (रेप-मर्डर करने वाले) के साथ न रखा जाए।
गृह मामलों की इस संसदीय स्थाई समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज लाल हैं। समिति ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में आरोपी के पुलिस कस्टडी में पहले 15 दिन रहने के दौरान कुछ बदलावों की सिफारिश की है।
लोकसभा में 11 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023), भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) इन तीन बिलों को पेश किया था। ये तीनों बिल कोड आॅफ क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट (सीआरपीसी) 1898, इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) 1860 और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 का स्थान लेंगे।
इकोनॉमिक आॅफेंडर्स को हथकड़ी क्यों ना लगाई जाए?
संसदीय समिति का मानना है कि हथकड़ी को कुछ खास तरह के जघन्य अपराधियों के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि वे भागें नहीं और गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अफसर सुरक्षित रहें।
समिति को ये भी लगता है कि आर्थिक अपराधों के आरोपी जघन्य अपराधियों की कैटेगरी में नहीं आते। दरअसल, आर्थिक अपराध में अपराधों की एक लंबी शृंखला शामिल है, जिसमें छोटे से लेकर गंभीर अपराध तक शामिल हैं। और इसलिए इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाना सही नहीं हो सकता।
हथकड़ी के मुद्दे पर संसदीय समिति की राय
हथकड़ी किसे लगेगी, यह बीएनएसएस के क्लॉज 43 (3) में बताया गया है। संसदीय समिति का सुझाव है कि क्लॉज 43 (3) में या तो बदलाव हो या इससे आर्थिक अपराध शब्द हटा दिया जाए।
बीएनएसएस के क्लॉज 43 (3) में ये भी कहा गया है- किसी भी पुलिस अफसर को अपराध की प्रकृति और उसकी गंभीरता का पता होता है। इसी आधार पर वो हथकड़ी का इस्तेमाल करता है। पुलिस यह देखती है कि क्या अपराधी में भागने की प्रवृत्ति रही है, क्या वह आॅर्गनाइज्ड क्राइम, आतंकी गतिविधि, रेप-मर्डर, मानव तस्करी जैसे संगीन तो नहीं करता रहा है?