नागपुर। पिछले वर्षों में सड़क दुर्घटनाओं के साथ ही आत्महत्या के मामले भी तेजी से बढ़े हैं. इससे एक ओर जहां पुलिस का काम बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर मेडिकल के फारेंसिक विभाग की जिम्मेदारी भी बढ़ी है. मेडिकल कॉलेज में हर दिन औसतन 12 से अधिक पोस्टमार्टम होते हैं. मध्य भारत में मेडिकल पोस्टमार्टम करने के मामले में अब भी अव्वल बना हुआ है.
अक्सर पुलिस शिकायत से संबंधित मामलों (एमएलसी) में मृतक का पोस्ट मार्टम किया जाता है. सिटी में मेडिकल और मेयो में पोस्टमार्टम किया जाता है. हर दिन प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल मिलाकर 12 से 15 पोस्टमार्टम किये जाते हैं. इस तरह वर्षभर में करीब 3,500 से अधिक पोस्टमार्टम होते हैं. प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल का अनुपात देखे तो यह 50-50 जैसे होता है. फारेंसिक विभाग विभाग में 12 डॉक्टरों की टीम है. वहीं 4 टेबल पर यह प्रक्रिया की जाती है.
पुलिस से संबंधित मामलों के अलावा भी कई बार डॉक्टरों के सुझाव पर भी मृतक का पोस्टमार्टम किया जाता है. मेडिकल में सिटी के अलावा कई बार भंडारा और वर्धा से भी शवों को लाया जाता है. विभाग में शवों को रखने के लिए एक ओर जहां 24 बाक्स उपलब्ध हैं. वहीं दूसरी ओर कोल्ड रूम भी बनाया गया है. इसका उपयोग कोविड के वक्त अधिक हुआ था.
एम्स पोस्टमार्टम गृह की प्रतीक्षा में
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (एम्स) में शवविच्छेदन गृह के लिए पिछले तीन वर्षों से प्रयास जारी है लेकिन अब तक अनुमति नहीं मिल सकी है. यही वजह है कि एम्स के एमएलसी शवों को भी मेडिकल में ही लाया जाता है. संस्था ने शवविच्छेदन गृह के लिए स्वास्थ्य उपसंचालक व वैद्यकीय शिक्षा विभाग से भी अनुमति मांगी है लेकिन संस्था केंद्रीय मंत्रालय के अधिन होने से मंजूरी का अधिकार उनका है.