नई दिल्ली. किसानों को पिछले तीन दशक में प्राकृतिक आपदाओं के कारण करीब 316.4 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। किसानों को हर साल फसलों और मवेशियों के रूप में औसतन 10.24 लाख करोड़ रुपये की चपत लग रही है। यह कृषि के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब पांच फीसदी है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की नई रिपोर्ट ‘द इम्पैक्ट ऑफ डिसास्टर्स ऑन एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्योरिटी’ में यह बात सामने आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 30 वर्ष में हर वर्ष औसतन 6.9 करोड़ टन अनाज का नुकसान हो रहा है। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो यह नुकसान 2021 में फ्रांस में अनाज की कुल पैदावार के बराबर है। इसी तरह फल, सब्जियों और गन्ने की फसलों में सालाना करीब चार करोड़ टन का नुकसान दर्ज किया गया, जो तुलनात्मक रूप से 2021 में जापान और वियतनाम में फलों और सब्जियों के कुल उत्पादन के बराबर है। इन आपदाओं से हर वर्ष औसतन 1.6 करोड़ टन मांस, अंडे और डेयरी उत्पाद बर्बाद हो रहे हैं।
भारत में हाल के वर्षों में फसल के नुकसान पर संसद में सरकारी उत्तरों से एकत्रित आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 से भारी बारिश और बाढ़ सहित मौसम संबंधी आपदाओं के कारण 3.60 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुई है।
वहीं, 2016 में 60.65 लाख हेक्टेयर पर फसलों को पहुंचे नुकसान का अनुमान 4,052.72 करोड़ रुपये था। यदि इसे 2016 से 3.60 करोड़ हेक्टेयर फसली क्षेत्र पर लागू कर दिया जाए तो यह 29,939 करोड़ रुपये के भारी नुकसान के रूप में परिलक्षित होता है।
एशिया में सबसे अधिक बर्बादी
रिपोर्ट के अनुसार, आपदाओं से कृषि को सबसे ज्यादा नुकसान एशिया में पहुंचा है। इसके बाद अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका की बारी आती है। हालांकि, जहां एशिया में यह नुकसान कृषि मूल्य का केवल चार फीसदी था, वहीं अफ्रीका में वह करीब आठ फीसदी था।
रोजाना 22 फीसदी कैलोरी की कम
एफएओ का कहना है कि आपदाओं के कारण दुनिया पहले ही चार फीसदी संभावित फसल और पशुधन उत्पादन गवां चुकी है। यह नुकसान प्रतिवर्ष 6.9 ट्रिलियन किलो कैलोरी अथवा 70 लाख वयस्कों की वार्षिक कैलोरी सेवन के बराबर है। अगर इस नुकसान की व्याख्या गरीब, निम्न और मध्यम आय वाले देशों के संदर्भ में की जाए तो यह रोजाना 22 फीसदी कैलोरी की कमी है।