नई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन से दुनिया के महासागरों, समुद्री तटों, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। अब वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से हमारी बहुमूल्य मिट्टी भी प्रभावित हो सकती है।
एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से दुनिया के कई इलाकों में मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता कम हो सकती है। इसका भूजल आपूर्ति, खाद्य उत्पादन, जैव विविधता और पर्यावरण प्रणालियों पर भी गंभीर असर तो पड़ेगा ही ग्रीष्मकाल के दिनों में भी बढ़ोतरी हो जाएगी। अब तक मिट्टी के तापमान पर कम गौर किया गया था, इस वजह से इसके कोई विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं थे।
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल रिसर्च (यूएफजेड) में बताया गया है कि न केवल मिट्टी और हवा का तापमान अलग अलग हो सकता है, बल्कि हवा की अपेक्षा जलवायु परिवर्तन का मिट्टी में गर्मी की तीव्रता और आवृत्ति पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं की टीम की अगुवाई यूएफजेड रिमोट सेंसिंग वैज्ञानिक डॉ. अल्मुडेना गार्सिया ने की है। आंकड़े मौसम स्टेशनों और रिमोट सेंसिंग उपग्रहों के साथ ईआरए5 रीएनालिसिस सेट से लिए गए। जबकि सिमुलेशन के आंकड़े पृथ्वी प्रणाली मॉडल से लिए गए।
हवा की तुलना में तेजी से गर्म होती है मिट्टी शोधकर्ताओं ने वर्ष 1996 से 2021 तक 10 सेमी मोटी ऊपरी मिट्टी की परत और दो मीटर तक की ऊंचाई पर निकट सतह की हवा के लिए सूचकांक की गणना की।
मूल्यांकन किए गए 118 मौस विज्ञान स्टेशनों में से दो-तिहाई में हवा की तुलना में मिट्टी अत्यधिक गर्म पाई गई। इसका मतलब है कि हवा की तुलना में मिट्टी में अत्यधिक गर्मी तेजी से विकसित होती है। जर्मनी, इटली और दक्षिणी फ्रांस में विशेष रूप से यह पाया गया है।
जनवरी1940 से काम कर रहा ईआरए-5
ईआरए-5 जनवरी 1940 से वर्तमान तक की अवधि को कवर करने वाली वैश्विक जलवायु की पांचवीं पीढ़ी का वायुमंडलीय पुनर्विश्लेषण है। यह बड़ी संख्या में वायुमंडलीय, भूमि और समुद्री जलवायु चर का प्रति घंटा अनुमान प्रदान करता है। डेटा 30 किमी ग्रिड पर पृथ्वी को कवर करता है और सतह से 80 किमी की ऊंचाई तक का वायुमंडल चर की जानकारी प्रदान करता है।