पोले के दूसरे दिन यानी तान्हा पोला के दिन महानगर में ‘मारबत और बड़ग्या उत्सव’ मनाया जाता है. इस दिन शहर में मारबत का जुलूस निकाला जाता है. मारबत से समाज की कुरीतियों और बीमारियों को दूर करने की गुहार लगाई जाती है. मध्य नागपुर के जगनाथ बुधवारी क्षेत्र में मारबत उत्सव शुरू किया गया था. इस उत्सव के तहत काली और पीली मारबत बनाई जाती है. आज से पीली मारबत को जनता के दर्शन के लिए रखा गया है.
राज्य की उपराजधानी नागपुर कई चीजों के लिए मशहूर है। नागपुर का नाम लेते ही खट्टे-मीठे संतरे, बरारी आतिथ्य-सत्कार, शानदार सावजी भोजन और विधानमंडल का शीतकालीन सत्र जैसी कई चीजें हमारी आंखों के सामने आ जाती हैं।
लेकिन, इसके अतिरिक्त भी नागपुर एक खास चीज के लिए भी मशहूर है और वह है पोले के दूसरे दिन यानी तान्हा पोले के दिन निकाला जाने वाला ‘मारबत’ जुलूस. मारबत उत्सव का इतिहास 139 वर्ष पुराना है. तेली समाज द्वारा निकाली जाने वाली पीली मारबत आज से जनता के दर्शन के लिए खोली गई है.
इस मारबत बडग्या उत्सव में राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर टिप्पणी करने वाले फलक लगाए जाते हैं। यह परंपरा 1881 से शुरू हुई.
तान्हा पोले के दिन ‘मारबत और बडग्या’ उत्सव के तहत दुनिया में केवल महाराष्ट्र के नागपुर में ही इस प्रकार का जुलूस निकाला जाता है. यह जुलूस ‘घेउन जा गे…मारबत‘ (लेकर जाओ रे मारबत) जैसे नारों के साथ निकाला जाता है. तर्हाने तेली समाज के अध्यक्ष प्रकाश गौरकर ने बताया कि देश में अंग्रेजों के दमनकारी शासन के विरोध में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में तर्हाने तेली समाज का भारी योगदान रहा. अंग्रेजी शासनकाल में लोग जुल्म से त्रस्त थे. उस समय देश को स्वतंत्रता दिलाने की इच्छा से वर्ष 1885 में तर्हाने तेली समाज-बांधवों ने जागनाथ बुधवारी क्षेत्र में पीली मारबत उत्सव समिति की स्थापना की. ब्रिटिश शासन के जुल्मों से तंग आए लोगों ने अंग्रेजों के दमन एवं जुल्म के विरोध में पीली मारबत की शुरुआत की.