महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश सीमा तथा सावनेर तहसीलके अंतिम छोर पर बसा केलवद नगरीसे कुछ दुरीपर स्थीत कपीलेश्वर मंदिर भक्ती, आस्था तथा तपस्याका पावन समागम के साथ ही अनोको महान तपस्वीयो के पावन करकमलोसे पावन धाम है। नैसर्गिक छटाओसे ओतप्रोत इस पुरातन मंदिर से अनेक किंदवतीया जुडी हुयी है। अनेक पुरातन ग्रंथोमे यहा का उल्लेख घोर तपस्वी कपीलमुनी की तपभुमी तथा गौमाता कपीला से जुडा हुआँ बताया है.इस मंदिर परिसरमे एक गोमुख है जहा गौ माताके मुखसे निरंतर जलधारा बहती रहती है। अगर यह जलघारा सुख जाती है उस वर्ष अकाल या कम बारिशके संकेतोसे जोडा जाता है। वही इस गौमुख धारा के जलमे एक पावन गुफा होने तथा इसी जलभरी गुफाके अंदर संत कपीलमुनीकी तपोभूमी होनेकी बात कही जाती है। इसी गुफासे एक किंदवती भी जुडी है। कहते है इस गुफा से एक गाय हमेशा चरने हेतू चरवाहेके गौधनमे आती थी जिसका मेहनताना चरवाहेको नही मिलता था। एक दिन चरवाहा गायका पीछा करता हुआँ आया तो गाय उस गौमुखसे बने झरने के निचे स्थीत गुफा में जाने लगी तो चरवाने उसकी पुछ पकडकर गुफामे प्रवेश कीया तो वहा देखा की एक सिध्द पुरुष तपस्यामे लीन है। गाय की आहट आतेही उन्होने आँखे खोली तो पाया की चरवाहा उनके आगे खडा होकर गाय चरानेका मेहनताना मांग रहा है। तो संत महात्मा उसे आँख बंद करणे को कह अपने पास जलती धुनीसे कुछ जलते हुये कोयलेके निवाले देकर जानेको कह अंतरज्ञान हो जाते है। तथा चरवाहा खुदको गुफासे सटे जंगलमे पाता है और तपस्वीने दिया हुआँ मेहनताना देखता है तो गुस्सा आता है तथा वह तपस्वी द्वारा दिये हुये कोयलेके निवाले वही फेक अपने घर चले जाता है। तथा वहा घटीत वु्त्तांत अपनी पत्नीको बताता है। जब पत्नी उस कंबल को झाडकर देखती है तो उसमें एक कोयलेका ढेला सोनेमें परिवर्तीत हुआँ दिखाई देते ही उसने चरवाहे उस स्थान भेजा परंतु वहा कुछ नही मिला। तबसे ना वह गाय फीर नजर आयी ना तपस्वी कपीलमुनी। कहते है उस घटनाके बाद कपीलमुनी तथा कपीला गौमाता गंगासागर स्थीत कपीलमुनी आश्रममे वास करते है।
इस पुरातन मंदिर में श्रावणमास के साथ ही वर्षभर अनेक उत्सवो के साथ संत गाडगे महाराज की पावन भुमीसे पधारे तपस्वी राम बाबा की पुण्यतिथी बडे ही उत्साह से मनाई जाती है। बताते है की संत राम बाबा ने जबसे इस स्थानको अपनी तपोभूमी बनाया तबसे वे नियमित करिबी केलवद ग्राम आकर बच्चे, युवावर्ग तथा ग्रामस्थो से मीलकर भावभक्ती, श्रमदान आदीका मार्गदर्शन कर उन्हे आध्यात्मसे जोडनेके कारण ही इस क्षेत्रका विकास हुआ। तथा क्षेत्र के विधायक सुनील केदार,नागपुर जिलापरिषद के पुर्व उपाध्यक्ष मनोहर कुंभारे, कपीलेश्वर मंदिर व्यवस्थापन समीती आदीके प्रयासो से इस पुरातन मंदिरको महाराष्ट्र राज्यके पुरातन मंदिरोके लीस्टके क श्रेणी में समावेश कर इस मंदिरका जीर्णोद्धार तथा सौंदर्यकरण किया जा रहा है। निसर्गरम्य वातावरणमे बसे इस मंदिर क्षेत्रमे अनेक छोटेमोटे पुरातन मंदिर, प्राकृतिक गौमुख झरना तथा अनेको तपस्वीयोके समाधीस्थलोका दर्शन करणे नागपुर जिला ही नही महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेशसे बडी संख्यामे भाविक पहुचकर अपनी मनोकामनाऐ पाते है। कपीलेश्वर यह मंदिर नागपुर छिंदवाडा मार्गपर करिब 45 कीमी दुरीपर बस तथा रेल मार्गसे जुडा हुआ है।