पंजाब में पहली बार गैर कांग्रेसी और गैर अकाली दल सरकार बनने के आसार साफ-साफ दिखने लगे है. ये कोई तुक्का नहीं है. आम आदमी पार्टी एक क्लियर विनर नज़र आ रही है. भगवंत मान, जिन्हें पंजाब में लोग एक कॉमेडियन के रूप में ज़्यादा जानते हैं, को पंजाब की जनता ने गंभीरता से लिया है. पंजाब के बारे में एक्ज़िट पोल के नतीजे सही होते सामने आ रहे हैं. पंजाब में आम आदमी के पक्ष में स्विंग पंजाब के इतिहास को बदल कर रख देगी.
अकाली और कांग्रेस से मुक्ति चाहती थी पंजाब की जनता
पंजाब के नतीजों में शुरुआती दो वजह नजर आती है. पहली वजह, पंजाब की जनता कांग्रेस और अकाली दल दोनों से ही मुक्ति चाह रही थी. इसका इज़हार पंजाब की लोगों ने समय समय पर किया भी है. पिछले 2017 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी, आखिरी वक़्त में सरकार बनाते-बनाते रह गई थी. इस बार पंजाब की जनता ने अपनी गलती को सुधार ली है. दूसरा कारण रहा, पंजाब में आप ने पिछले पांच वर्षों में युवाओं के साथ-साथ, किसानों और पंथिक वोट बैंक के बीच भी अच्छा खासा पैठ बनाया. इसकी बहुत बड़ी वजह थी युवाओं के बीच बढ़ती बेरोजगारी और युवाओं के बीच बढ़ता हुआ असंतोष. जिसको आम आदमी पार्टी ने खूब भुनाया.
युवाओं और पंथिक वोट पर किया आप ने कब्जा
जहां तक हार्ड कोर सिख वोट बैंक का मुद्दा है, इसके लिए केजरीवाल ने पंजाब से लेकर कनाडा तक जमीन से आसमान एक कर दिया. भले ही केजरीवाल के ऊपर खालिस्तानियों के साथ गलबहियां करने के आरोप लगते रहे लेकिन पंजाब की जनता ने इसको ज़्यादा तवज्जो नहीं दी. बिजली और पानी का मुद्दा ऐसे विषय थे, जिसको लेकर अरविंद केजरीवाल ने कई लोक लुभावन वादे किए. दिल्ली की तर्ज़ पर गरीबों को मुफ्त बिजली देने के वादे ने एक बड़े वर्ग का मन मोह लिया. ये महज वादे नहीं थे, दिल्ली में केजरीवाल ने ऐसा वाकई कर दिखाया था.
चन्नी जितना कर सकते थे, किया
बीजेपी के लिए भी सबक है पंजाब में
बीजेपी पंजाब में पहली बार अकेली चुनाव लड़ रही थी. इसलिए उसे भी इस बात का अंदाज़ा लग जाएगा कि पार्टी को अपनी स्थिति बेहतर बनाने के लिए क्या रणनीति अपनानी पड़ेगी. तैरने के लिए पानी में घुसना ज़रूरी होता है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भी आगे की रणनीति बनानी होगी. पर सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस का हुआ है. पंजाब कांग्रेस का गढ़ रहा है. ऐसा लग रहा है कि दिल्ली की तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने किला फतह कर लिया है. अब कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़नी होगी. कुल मिलाकर अमरिंदर सिंह के लिए कांग्रेस की हार किसी स्वीट रिवेंज से कम नहीं है.