भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है, लेकिन यह सम्मान केवल एक प्रतियोगिता जीतने से नहीं मिला था — इसके पीछे गहराई से जुड़ी आध्यात्मिक और पौराणिक मान्यताएँ हैं।
🕉️ प्रथम पूज्य बनने का रहस्य
- केतु ग्रह का प्रतीक: गणेशजी को केतु ग्रह का प्रतीक माना जाता है, जो राहु के साथ मिलकर कर्मों के फल का निर्धारण करता है। इस कारण वे बाधाओं को दूर करने वाले देवता माने जाते हैं।
- गण का नेतृत्व: ‘गण’ का अर्थ है समूह, और गणेशजी को देवताओं के गणों का अधिपति माना गया है। इसलिए हर कार्य की शुरुआत उनके नाम से होती है।
- तीन प्रमुख शक्तियाँ: गणेशजी में ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन) और शिव (संहार) की शक्तियाँ समाहित हैं, जिससे वे संपूर्णता के प्रतीक बनते हैं।
- सांकेतिक रूप से प्रथम: उनका स्वरूप — बड़ा मस्तक, छोटी आँखें, लंबा पेट — ध्यान, एकाग्रता और ज्ञान का प्रतीक है। यह उन्हें आध्यात्मिक रूप से भी प्रथम बनाता है।
📜 प्रतियोगिता का प्रसंग
- एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, शिवजी ने कार्तिकेय और गणेशजी को पूरी सृष्टि की परिक्रमा करने की चुनौती दी थी। कार्तिकेय तो तुरंत निकल पड़े, लेकिन गणेशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर ली — जिसे उन्होंने सृष्टि के समकक्ष माना। इस बुद्धिमत्ता के कारण उन्हें प्रथम पूज्य का दर्जा मिला।

यह सम्मान केवल एक घटना का परिणाम नहीं, बल्कि उनके बहुआयामी स्वरूप और आध्यात्मिक महत्व का प्रतीक है।