बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीसीसीआई की याचिकाओं को खारिज किया, कोच्चि टस्कर्स को मिला 538 करोड़ का मुआवजा

19 जून 2025 को, बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की अब निष्क्रिय फ्रेंचाइजी कोच्चि टस्कर्स केरल को दिए गए 538 करोड़ रुपये के मध्यस्थता पुरस्कारों के खिलाफ थीं। यह फैसला कोच्चि टस्कर्स के लिए एक बड़ी जीत है, जिन्हें 2011 में बीसीसीआई द्वारा उनकी फ्रेंचाइजी समाप्त करने के बाद मुआवजे का दावा करने का अधिकार मिला था।

मामला क्या है?

कोच्चि टस्कर्स केरल, जो 2010 में आईपीएल में शामिल हुई थी, ने केवल एक सीजन (2011) खेला था। बीसीसीआई ने फ्रेंचाइजी के मालिकों के साथ वित्तीय और अनुबंध संबंधी विवादों के कारण उनकी फ्रेंचाइजी को समाप्त कर दिया था। इसके बाद, कोच्चि टस्कर्स ने बीसीसीआई के खिलाफ मध्यस्थता का रास्ता अपनाया और दावा किया कि उनकी फ्रेंचाइजी को अनुचित रूप से समाप्त किया गया, जिससे उन्हें भारी वित्तीय नुकसान हुआ।

मध्यस्थता tribunal ने कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में फैसला सुनाया और बीसीसीआई को 538 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। बीसीसीआई ने इस फैसले को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने अब इन याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि मध्यस्थता tribunal का फैसला उचित और कानूनी रूप से सही था। कोर्ट ने बीसीसीआई की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि फ्रेंचाइजी समाप्त करने का निर्णय अनुबंध के नियमों के खिलाफ था, और कोच्चि टस्कर्स को हुए नुकसान के लिए मुआवजा देना बीसीसीआई की जिम्मेदारी है।

इस फैसले ने बीसीसीआई को झटका दिया है, क्योंकि अब उन्हें कोच्चि टस्कर्स को 538 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा, जो कि एक बड़ी राशि है। यह मामला बीसीसीआई की फ्रेंचाइजी प्रबंधन नीतियों और अनुबंधों की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है।

कोच्चि टस्कर्स के लिए इसका क्या मतलब है?

हालांकि कोच्चि टस्कर्स अब आईपीएल का हिस्सा नहीं है, यह मुआवजा उनके मालिकों और निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय राहत है। यह फैसला अन्य आईपीएल फ्रेंचाइजियों के लिए भी एक नजीर स्थापित करता है, जो भविष्य में बीसीसीआई के साथ विवादों में पड़ सकती हैं।

बीसीसीआई के लिए सबक

यह मामला बीसीसीआई के लिए एक सबक के रूप में देखा जा रहा है। दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट बोर्डों में से एक होने के बावजूद, बीसीसीआई को अपने अनुबंधों और फ्रेंचाइजी प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता बरतने की जरूरत है। कोच्चि टस्कर्स के साथ हुआ विवाद और अब कोर्ट का फैसला बीसीसीआई की छवि को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल कोच्चि टस्कर्स के लिए एक बड़ी जीत है, बल्कि यह खेल प्रशासन और अनुबंधों की पवित्रता के महत्व को भी रेखांकित करता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बीसीसीआई इस फैसले के बाद अपने भविष्य के निर्णयों में क्या बदलाव लाती है।

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