आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं

नई दिल्ली. पाकिस्तान में भले ही सरकार बदल गई हो, लेकिन भारत के खिलाफ उसकी हरकतें बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान की संसद में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन पर भारत के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया था। इसके बाद अब भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान सामने आया है। विदेश मंत्रालय ने कहा है, ‘हम जम्मू-कश्मीर में परिसीमन अभ्यास पर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली द्वारा पारित हास्यास्पद प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं।’ भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है, पाकिस्तान को भारत के आंतरिक मामलों में निर्णय लेने या हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। फिर चाहें वह अवैध कब्जे वाला क्षेत्र हो या भारत का क्षेत्र। पाकिस्तान की संसद को कोई हक नहीं है कि वह जम्मू-कश्मीर के परिसीमन पर कोई टिप्पणी करे। जम्मू कश्मीर और लद्दाख हमेशा से भारत का आंतरिक हिस्सा था और रहेगा। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में परिसीमन व्यापक परामर्श और भागीदारी के सिद्धांतों पर आधारित एक लोकतांत्रित कार्रवाई है। पाकिस्तान की संसद में यह प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के विरोध में लाया गया था। प्रस्ताव में भारत के परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया और आरोप लगाया कि इस अभ्यास के माध्यम से भारत अपनी पांच अगस्त 2019 की अवैध कार्रवाई और उसके बाद के उपायों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। प्रस्ताव में सरकार से कहा गया है कि सरकार को कश्मीर मुद्दे को सभी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर मजबूती से पेश करना चाहिए। इनमें संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) पर भी इसे उठाने के लिए कहा गया है।

पिछले सप्ताह ही पेश हुई थी रिपोर्ट
मार्च 2020 में गठित परिसीमन आयोग ने पिछले सप्ताह अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की थी और जम्मू क्षेत्र को छह अतिरिक्त विधानसभा सीटें और कश्मीर घाटी को एक सीट प्रदान की थी। राजौरी और पूंछ को अनंतनाग संसदीय सीट के तहत किया गया है। इस हिसाब से 90 सदस्यों वाले सदन के तहत जम्मू में अब 43 विधानसभा सीटें होंगी और कश्मीर में इनकी संख्या 47 रहेगी।

प्रस्ताव में कश्मीर को बताया है अंतरराष्ट्रीय मुद्दा
पाकिस्तानी संसद में पारित हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि कश्मीर मुद्दे का विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडा में काफी समय से लंबित है। इसमें मांग की गई है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करना चाहिए और इसके तहत अपनी जिम्मेदारियां पूरी करनी चाहिए।

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