खर्रा स्वास्थ्य के लिए हानीकारक फिर भी 28 प्रतिशत शौकिन

विगत कुछ वर्षों में विदर्भ प्रांत में उसमें भी नागपुर-वर्धा-जिले में खर्रा इस नये शौक ने विदर्भप्रांत के साथ साथ धिरे धिरे संपूर्ण राज्य में अपनी, पैठ मजबूत कर ली है।
वहीं राज्य के औषधी तथा अन्न प्रशासन विभाग के मुक दर्शक कार्यशैली अपने अकार्यक्षमता का परिचय दे रहे है। जो की समाज के आरोग्य के दृष्टिकोण से बहुत ही गंभीर खतरा बनते जा रहा है। तो वहीं खर्रा, गुटका-मावा के शौकिन खुद ही भयंकर बिमारी को निमंत्रण दे रहे हैं।सुपारी के बारिक टुकडे तथा सुंगधित तंबाकू के मिश्रण को मिलाकर/घोटकर तयार किया गया मिश्रण को खर्रा कहा जाता है। कहीं कहीं मावा तथा गूटका भी कहा जाता है। खर्रा के शौकिन इस खर्रा को सफर में जाते समय स्टाक में रखते है। साथ ही परिचितों को खर्रे को तोहफे के रूप में भी देते हैं। सुगंधित तंबाकू, चूना, कत्था, तथा बारिक सुपारी के टुकड़ों का हांथो से तथा खर्रा मिक्सर मशिन से घोटा गया मिश्रण तंबाकू शौकिनो को काफी स्वादिष्ट लगता है। यह स्वादिष्ट खर्रा 10-12 आयुवर्ग के बालकों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों को तथा महिलाओं को भी खर्रे के लत में देखा जाता है।
स्थानिय कंपनीयों के गेट पर जानलेवा खर्रे की जांच होती है। इस से बचने का तरिका भी खर्रा शौकिन महिला-पुरूष कामगार अपने अपने टिफिन में खर्रे की पुडीया ले जाते है।इस विषय पर चिकित्सकों की आम राय यही है सिगरेट-शराब के शौकिनों से कहीं ज्यादा खर्रे के शौकिन हो गये हैं। यह शराब तथा सिगरेट से ज्यादा नुकसान देह है।
फिर भी यह शौक ऐसा बन गया है कि एक ही परिवार के तथा मित्र समुदाय किसी भी उम्र का लिहाज रखे बजाय खर्रा मांगकर शौक पूरा करने में कोई छिझक नही रखते। नोकरी पेशा तथा कंपनी के शिप्टवाईज डिवटी करने वाले मजदूरों में खर्रा का काफी प्रचलन है। अधिकांश पानठेलों पर यह खर्रा मिलता है, पर अब खर्रे ने गृहउद्योग का भाग बनते जा रहा है, कुछ बेरोजगारों ने खर्रा घोटने के मशिन घर पर रख कर प्रति एक किलो सुपारी में सुगंधित तंबाकू, चूना, कत्था मिलाकर घोटकर 50से 60 खर्रा तयार किये जाते हैं। जो 25 से 30 रूपये की एक पुडीया खर्रा मिलता है। ग्रामीण आंचल में खर्रा शौकिनों की संख्या 40 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र में 35 प्रतिशत बताई जाती है।
खर्रा निर्माण में उपयोग में लाई जाने वाली सुपारी की गुणवत्ता घटिया रहती तथा केमिकल्स युक्त सुगंधित तंबाकू तथा चूना एवं कत्थे का यह जानलेवा मिश्रण जो आरोग्य के लिये हानिकारक है, फिर भी राज मार्ग के क्षेत्र में प्रतिदिन लाखों का कारोबार होता है। जिसमें बेरोजगारों को एक किलो के पिछे 300 रूपये मिलते हैं। जिससे प्रत्येक गांव में अब दो दो पान ठेलो के माध्यम से बेरोजगारों को काम मिलता है। बडे तथा नगरिय क्षेत्र में ही 30 से 35 खर्रा बिक्री दुकाने है। ग्रामीण आंचल के खर्रा केंद्र है सो अलग।बताया जाता हैं की राज्य में तंबाकू जन्यपदार्थों से होने वाली मुख रोग के पेशंट सबसे अधिक नागपुर जिले में बताये गये है।
जिले में खर्रे के माध्यम से प्रतिवर्ष करोडों का कारोबार होता है हजारो को रोजगार भी मिलता है। पर साथ ही मूख रोग तथा कैंसर जैसे भयंकर रोग के ॠग्णो के संख्या में भारी बढत्तरी हो रही। वही सरकारी कार्यालयों (तहसील-पुलीस थाना-) के दिवारो सीढ़ियों के कोने खर्रे की पिचकारीयों रंगे रहते हैं। जो बीमारी को सदैव निमंत्रण देते रहते हैं।जानलेवा खर्रों की हजारों दुकाने शरह तथा ग्रामीण आंचल में हैं। पर औषधी तथा अन्न प्रशासन विभाग मूक दर्शक बने रहने से जानलेवा खर्रों की बिक्री जोरों पर है। इस में अधिकांस सरकारी अर्धसरकारी तथा निजी क्षेत्र के विभाग में कार्यरत कर्मचारी- अधिकारीयों जो खर्रे के शौकिन है, संबधित कार्यालयों के पिचकारीयों से लाल लाल कोने दर्शाते है की संबधीत कार्यालयों में खर्रों के स्थाई शौकिन अधिकारीयों की संख्या कितनी होगी।खर्रे का कारोबार के बारे में जानकारी लेने पर पता चला है की अकले काटोल तहसील के नगरपरिषद क्षेत्र तथा ग्रामीण आंचल के 83 ग्राप क्षेत्र में सालाना 12 करोड से अधिक का कारोबार होता है। फिर भी संबधित विभाग की दुर्लक्षता से यह कारोबार फल फूल रहा है।

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